कुर्सी पर बैठने पहले स्पीकर को छिपने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ता है?
क्यों मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष विधानसभा अध्यक्ष को ढूंढ कर लाते हैं?
क्यों विधानसभा अध्यक्ष को जबरदस्ती कुर्सी पर बिठाया जाता है?
लोकतंत्र की कई परंपराएं बेहद ही खूबसूरत है। 24 वें विधानसभा अध्यक्ष के रूप में आज जब सतीश महाना ने अपना कार्यभार ग्रहण कर रहे थे तब परंपरा के मुताबिक नेता सदन यानी मुख्यमंओसत्री और नेता प्रतिपक्ष दोनों घेरकर विधानसभा अध्यक्ष को उसकी कुर्सी तक ले गए।
लेकिन दरअसल यह एक परंपरा है जो ब्रिटिश काल से चली आ रही है। विधानसभा अध्यक्ष बनने वाले व्यक्ति को नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष दोनों खोज कर लाते हैं और फिर जबरदस्ती कुर्सी पर बिठाते है। दरअसल ब्रिटिश कार्यकाल में स्पीकर का काम उस समय के राजा और रानी को संदेश देना होता था। ब्रिटिश काल की राजशाही में वहां स्पीकर और राजा के बीच में जमकर मतभेद हुआ करता था दोनों के बीच में वर्चस्व की जंग होती थी और यही वजह है की उस समय छह स्पीकरों की हत्या हो गई थी। इन हत्याओं के बाद जब नया स्पीकर चुना गया, तो वह डर के कारण अपने गांव में जाकर छिप गया और उसे खोजकर अध्यक्ष के पद पर बैठाया गया। कब से स्पीकर के चयन को लेकर यह परंपरा चली आ रही है जब भी स्पीकर का चयन होता है तो जिस व्यक्ति को स्पीकर बनाया जाता है। वह विधानसभा के ही किसी कमरे में छुप कर बैठ जाता है उसके बाद मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष उसे ढूंढ कर लाते हैं और जबरदस्ती कुर्सी पर बैठ आते हैं लेकिन पिछली सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे हृदय नारायण दीक्षित ने इस परंपरा का पालन नहीं किया उन्होंने कहा कि यह परंपरा जब शुरू हुई तब राजा और स्पीकर के बीच द्वंद रहता था। लेकिन, यहां ऐसा नहीं है इसलिए उस परंपरा को कायम रखना हास्यास्पद है।
इस बार भी सतीश महाना ने उस परंपरा का पालन तो नहीं किया हां पीछे कुर्सी पर जरूर बैठे रहे जहां से मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव उन्हें लेकर आए और कुर्सी पर बिठाया। इस परंपरा पर तंज कसते हुए अखिलेश यादव ने सतीश महाना पर चुटकी भी ली और कहा कि अध्यक्ष जी आप बधाई के पात्र हैं कि आप छिपे नहीं।