वाराणसी। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दो पक्षों के बीच करीब 353 साल से विवाद चल रहा है। इसी को निपटाने के लिए सिविल कोर्ट ने मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश दिया है। जिसका कार्य शनिवार की सुबह आठ बजे से शुरू हो गया। करीब 45 से ज्यादा सदस्य मस्जिद के अंदर दाखिल हो गए हैं और तहखानों के ताले खोल वीडियोग्राफी का काम शुरू कर दिया है। अस्तित्व न्यूज आपको इस पुराने मामले के कई अहम पहलू से रूबरू कराने जा रहे है।
5 महिलाओं ने दायग की थी याचिका
पिछले साल अगस्त में 5 महिलाओं ने वाराणसी की स्थानीय अदालत में एक वाद दायर किया था। इसमें महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर समेत कई विग्रहों में पूजन-दर्शन की इजाजत देने और सर्वे कराने की मांग की थी। महिलाओं की याचिका पर कोर्ट ने मस्जिद परिसर के सर्वे के आदेश दिए हैं। शनिवार की सुबह 8 बजे से लेकर 12 बजे तक सर्वे का कार्य किया जाएगा। 17 मई को एडवोकेट कमिश्नर कोर्ट में सर्वे रिपोर्ट पेश करेंगे।
जानें विवाद की वजह
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा ही है। हालांकि, अयोध्या के मामले में मस्जिद बनी थी और इस मामले में मंदिर-मस्जिद दोनों ही बने हुए हैं। काशी विवाद में हिंदू पक्ष का कहना है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी। हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां मंदिर नहीं था और शुरुआत से ही मस्जिद बनी थी।
हिंदू पक्ष की तीन बड़ी मांगें
हिन्दू पक्ष की ओर तीन बड़ी मांगें की गई हैं। जिसमें पहली मांग अदालत पूरे ज्ञानवापी परिसर को काशी मंदिर का हिस्सा घोषित करे। इसके अलावा मस्जिद को ढहाने का आदेश जारी हो और मुस्लिमों के यहां आने पर प्रतिबंध लगे। जबकि तीसरी प्रमुख मांग हिंदुओं को यहां पर मंदिर का पुरर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए। हिन्दू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर है और सर्वे के बात ये बात पूरी तरह से साफ हो जाएगी।
इस विवाद में कब-कब क्या हुआ
इस मामले पर 1919 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी कोर्ट में पहली याचिका दायर हुई। याचिकाकर्ता ने ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। 1998 में ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमान इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। कमेटी ने कहा कि कानून इस मामले में सिविल कोर्ट कोई फैसला नहीं ले सकती। हाईकोर्ट के आदेश पर सिविल कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगी। 22 साल तक ये केस पर सुनवाई नहीं हुई।