गोरखपुर। भारत अपनी आजादी का 75वां अमृत महाउत्सव मना रहा है। 15 अगस्त को घर-घर तिरंगा फहराया जाएगा और जश्न-ए-आजादी को धूम-धाम के साथ भारतवासी बनाएंगे। अस्तित्व न्यूज अमृत महाउत्सव में आपको उन क्रांतिकारियों से हरदिन रूबरू कराता है, जिन्होंने अंग्रेजों से हिन्दुस्तान को आजाद कराने के लिए हंसते-हंसते प्राण न्योछावर कर दिए। इन्हीं में से एक थे चौरीचौरा के डुमरी गांव निवासी क्रांतिकारी बंधू सिंह। जिन्हें अंग्रेजों ने अलीनगर स्थित एक पेड़ पर फांसी देने का 6 बार प्रयास किया लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट जाता था। 7वीं बार मां जगदजननी का ध्यान कर फांसी के फंदे को चूमते हुए उन्होंने कहा, ’हे मां अब मुझे मुक्ति दो।’ फिर फंदा नहीं टूटा और महान क्रांतिकारी अमर हो गया। जैसे ही उनकी मौत हुई वैसे ही एक पेड़ से खून की धारा निकल पड़ी।
अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला
मेरठ की क्रांति की आंच कानपुर से लेकर गोरखपुर पहुंच गई थे। गोरखपुर के डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए गोर्रा नदी के जंगलों में बाबू बंधू सिंह रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। देवीपुर की यह देवी बाबू बंधू सिंह की इष्ट देवी थी। जो उनके शहीद होने के बाद तरकुलहा देवी के नाम से प्रसिद्द है।
बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर
शहीद बंधू सिंह के परिजन बीजेपी नेता अजय सिंह ने बताया कि, जब बंधू सिंह बड़े हुए तो उनके दिल में भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आग जलने लगी। बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे, इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसकी गर्दन धड़ से अलग कर सिर मां शक्ति स्वरूपा पिंडी पर चढ़ा देते। जब कई सैनिक जंगल में जाकर नहीं लौटे तो अंग्रेज यहां समझते रहे कि सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जा रहे हैं।
हाथ नहीं लगे बंधू सिंह
इतिहासकार बताते हैं कि, पहले तो अंग्रेज अफसर यह समझते रहे कि सैनिक जंगलों में जंगली जानवरों का शिकार हो रहे हैं। बाद में धीरे-धीरे उन्हें भी पता लग गया कि अंग्रेज सिपाही बंधू सिंह के हाथों बलि चढ़ाएं जा रहे हैं। ’अंग्रेजों ने बंधू सिंह की तलाश में जंगल में एक बड़ा तलाशी अभियान चला दिया। बहुत तलाश के बाद भी बंधू सिंह उनके हाथ नहीं आए।
इस तरह से पकड़े गए बंधू सिंह
इतिहासकार बताते हैं, बंधू सिंह को सरदार मजीठिया की मुखबिरी के चलते अंग्रेजों ने पकड़ लिया। कोर्ट में उन्हें पेश किया गया फिर गोरखपुर के अलीनगर चौराहे पर सरेआम उन्हें फांसी दी गई। मंदिर के पुजारी दिलीप त्रिपाठी ने कहा, बंधू को उधर फांसी का फंदा लगा और इधर तरकुल का पेड़ का सिरा टूट गया और खून की धारा काफी देर तक बहती रही। वहीं से इस देवी का नाम माता तरकुलहा के नाम से प्रसिद्द हो गया। मंदिर में भक्तों द्वारा सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।