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Shaligram stone: नेपाल की गंडकी नदी की शिलाओं से क्यों बनाई जा रहीं हैं रामलला की मूर्तियां… इसके पीछे क्या है पौराणिक आस्था

Ram Mandir: राम मंदिर (Ram Mandir) में रामलला (Ramlala) की मूर्तियों के लिए नेपाल की गंडकी नदी (Gandaki River ) से दो विशालकाय शिलाओं को लाया गया है। यह नेपाल (Nepal) से सकड़ के रास्ते अयोध्या (Ayodhya) लाई जा रही हैं। 127 क्विंटल की शिलाओं से भगवान राम और सीता की प्रतिमाएं बनाई जाएंगी। मूर्तियां बनाए जाने पहले इन शिलाओं की विधी विधान से पूजन किया जाएगा। यह 6 लाख साल पुराने शालिग्राम पत्थर (Shaligram stone) की खसियत पौराणिक है।

शालिग्राम पत्थर को शास्त्रों में साक्षात विष्णु स्वरूप माना जाता है। हिंदू शालीग्राम भगवान की पूजा करते हैं। यह पत्थर उत्तर नेपाल की गंडकी नदी में पाया जाता है। हिमालय से आने वाला पानी इन चट्टानों से टकराकर पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है। इन्हीं की मूर्ति बनाकर उन्हें पूजा जाता है। वहीं, अगर विज्ञान के हिसाब के समझें तो ये पत्थर एक तरह का जीवाश्म है, जोकि 33 तरह के होते हैं।

देशभर में इन पत्थरों को तलाशकर इनकी मूर्तियां बनाई जाती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पत्थर को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यता यह भी है कि इसे कहीं भी रखकर पूजने से उस जगह पर लक्ष्मी का वास होता है। 2024 की मकर संक्रांति से पहले भगवान रामलला की प्रतिमा इस पत्थर से बनकर तैयार हो जाएगी। इन पत्थरों का सीधा रिश्ता भगवान विष्णु और माता तुलसी से भी है। इसलिए शालिग्राम की अधिकतर मंदिरों में पूजा होती है और इनको रखने के बाद प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत भी नहीं होती।

भारत लाए जा रहे ये दो पत्थर 5-6 फीट लंबे और लगभग 4 फीट चौड़े हैं। इनका वजन लगभग 18 और 12 टन है। ’राम लला’ की प्रतिमा इन चट्टानों से उकेरी जाएगी और मूल गर्भगृह में स्थापित की जाएगी। इन पवित्र चट्टानों से रामलला के साथ सीताजी की प्रतिमा भी तराश कर बनाई जाएगी। 2024 में मकर संक्रांति (14 जनवरी) को राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की नई मूर्ति स्थापित की जाएगी।

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