पंजाब में, सिख समुदाय दिवाली के दिन ‘बंदी छोड़ दिवस’ (Bandi Chhor Divas 2023) मनाता है। इस दिन सिख संगत द्वारा धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसका इतिहास मुग़ल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है, जिसमें कहा जाता है कि इस दिन जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा किया था। इस लेख के माध्यम से हम इस दिवस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को जानेंगे।
दीपावली, भाई-चारे का एक सुंदर त्योहार है, जो हिंदू और सिख धर्मों में आनंदपूर्ण आत्मसमर्पण के साथ मनाया जाता है। इसे सिख धर्म में “बंदी छोड़ दिवस” (Bandi Chhor Divas 2023) के नाम से भी जाना जाता है, और इसका इतिहास मुग़ल साम्राज्य से जुड़ा है। आइए, इस लेख के माध्यम से इस उत्सव के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझें।
बंदी छोड़ दिवस का क्या इतिहास है?
सिख धर्म में, दिपावली का त्योहार बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार सिखों के तीन प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसमें पहला माघी, दूसरा बैसाखी और तीसरा बंदी छोड़ दिवस शामिल हैं। इस त्योहार का इतिहास सिखों के छठे गुरू, हरगोबिंद साहिब, से जुड़ा है। कहा जाता है कि इस दिन जहांगीर ने हरगोबिंद साहिब को रिहा किया था। मुग़लों ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर के किले को अपने कब्जे में लिया और उन्हें किले की सज़ाएँ भुगतने के लिए जेल में बंद कर दिया था।
इस क़दम में, मुग़ल सल्तनत के खिलाफ खतरा माने जाने वाले व्यक्तियों को इस जेल में कैद किया जाता था। यहाँ, जहाँगीर ने 52 राजाओं के साथ सिख समुदाय के छठे गुरु हरगोबिंद साहिब को बंद करके रखा था। बाद में, जब मुग़ल बादशाह ने अपनी ग़लती का एहसास किया, तो उन्होंने घोषणा की कि गुरु हरगोबिंद साहिब को जेल से मुक्त किया जाएगा।
वहीं, हरगोबिंद साहिब ने जहांगीर की इस बात पर असहमति जताते हुए कहा था कि वह इस जेल से एकला नहीं जाएंगे, बल्कि वे 52 राजाओं को साथ लेकर ही जाएंगे। इसके बाद गुरू साहिब ने लिए गए 52 कलियों के चोले (वस्त्र) का सिलाई करवाया। 52 राजाओं को एक-एक कली पकड़कर किले से बाहर लाया गया। इस प्रकार, उन्हें कैद से मुक्ति प्राप्त हो सकती थी।
दीपावली के दिन ही क्यों मनाया जाता है बंदी छोड़ दिवस?
दिवाली (Diwali 2023) के दिन, गुरू साहिब का आगमन अमृतसर में हुआ था। इसके बाद, आतिशबाजी और युद्ध कौशल का अद्वितीय प्रदर्शन हुआ। पूरे शहर को दीपों की रौशनी से सजाया गया था, जिससे यहां का माहौल रौंगतें बिखेर दी गईं। इसके बाद से ही दीपावली को “बंदी छोड़ दिवस” के रूप में मनाना शुरू हो गया।
कैसे मनाते हैं सिख बंदी छोड़ दिवस को?
इस दिन, सिख संगत द्वारा धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन समागमों में कीर्तन और कथा का आयोजन किया जाता है। साथ ही, इस अवसर पर बड़े स्तर पर आतिशबाजी भी की जाती है। गुरुद्वारों में दीप जलाए जाते हैं और श्रद्धालुओं को गुरुद्वारे में नतमस्तक होने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
कब से शुरू हुआ बंदी छोड़ दिवस?
बंदी छोड़ दिवस सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो दीपावली के दिन मनाया जाता है। इसे गुरु अमर दास जी ने सिख उत्सव के रूप में मान्यता प्रदान की हैं। 20वीं सदी से इसे सिख धर्मिक नेताओं द्वारा बंदी छोड़ दिवस के रूप में स्वीकृति मिली है।