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पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह से सीएम नीतीश कुमार ने बनाई दूरी, 22 साल पुरानी दोस्ती तोड़ इनसे हाथ मिला सकते हैं ‘सुशासन बाबू’

पटना। महाराष्ट्र में जिस तरह से बीजेपी ने ‘खेला’ कर उद्धव ठाकरे की सरकार गिरा दी और शिंदे को मुख्यमंत्री बनवा दिया। इसी के बाद से विपक्षी खेमा भी एक्टिव है और इसका नजारा बिहार में देखने को मिल रहा है। यहां आरसीपी सिंह का इस्तीफा और जेडीयू का मोदी कैबिनेट से बाहर रहने का फैसला करना बड़े उलटफेर के संकेत दे रहे हैं। कयास गलाए जा रहे हैं कि बीजेपी और सुशासन बाबू की 22 साल पुरानी दोस्ती टूट सकती है। बात इतनी आगे तक निकल गई है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम और बैठकों से मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने दूरी बना ली है। आने वाले दिनों में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो भविष्य ही जानें, लेकिन राजनीति के गलियारों में खबर है कि एक से दो दिन में जदयू, बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान कर सकती है।

नीतीश कुमार बड़ा फैसला ले सकते हैं
सूबे बिहार की सत्ता पर भले ही बीजेपी और जेडीयू काबिज हैं, लेकिन दोनों ही दलों के रिश्ते को लेकर हर रोज नए-नए दावे किए जा रहे हैं। जानकार मान रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बड़ा फैसला ले सकते हैं। इसके संकेत उन्होंने पहले ही दे दिए थे। पिछले एक महीने पर ही गौर करें तो देखने में आता है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच सब ठीक नहीं चल रहा है. कई बार ऐसा हुआ है जब कि केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में नीतीश कुमार शामिल ने दूरी बनाए रखा। जानकारों का मानना है कि नीतिश जल्द ही बीजेपी से अलग होकर आरजेडी से हाथ मिला सकते हैं।

बैठकों से बनाई दूरी
इसके पहले 17 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में ’हर घर तिरंगा’ अभियान को लेकर मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई गई थी। इसमें नीतीश कुमार नहीं शामिल हुए थे। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई भोज में भी आमंत्रण के बावजूद नीतीश कुमार नहीं पहुंचे। 25 जुलाई को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहम समारोह में नीतीश कुमार नहीं पहुंचे थे। पीएम मोदी की अध्यक्षता में रविवार को नीति आयोग की बैठक हुई, जिसमें नीतीश कुमार शामिल नहीं रहे। सोमवार को मुख्यमंत्री ने अपना जनता दरबार आयोजित किया।

दोनों दलों के बीच रार बरकरार
बता दें कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू ने 2020 में भले ही मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही हैं, लेकिन दोनों दलों के बीच सियासी तल्खी बनी हुई है। जातिगत जनगणना से लेकर एनआरसी-एनपीआर और अग्निपथ योजना सहित कई मुद्दों पर नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग स्टैंड लिया था। वहीं, नीतीश ने अपने ओएसडी को जेडीयू से बाहर निकाला तो बीजेपी के साथ नजदीकियां आरसीपी सिंह की तरह बढ़ गई। वहीं, पिछले दिनों पटना में बीजेपी अपने विभिन्न मोर्चों की संयुक्त राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर 200 विधानसभा सीटों के लिए रूप रेखा तैयार की तो इसके जवाब में जेडीयू ने कहा है कि उसकी तैयारी सभी 243 सीटों के लिए है।

बिहार की राजनीति के जानें आंकड़े
बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। यहां बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को 122 सीटों की जरूरत है। वर्तमान आंकड़ों को देखें तो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। वहीं, बीजेपी के पास 77, जदयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, कम्यूनिस्ट पार्टी के पास 12, एआईएमआईएम के पास 01, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के पास 04 सदस्य हैं। इसके अलावा अन्य विधायक हैं।

ऐसे मिलकर बना सकते सरकार
वर्तमान में जदयू के पास 45 विधायक हैं। उसे सरकार बनाने के लिए 77 विधायकों की जरूरत है। पिछले दिनों राजद और जदयू के बीच नजदीकी भी बढ़ी हैं। ऐसे में अगर दोनों साथ आते हैं तो राजद के 79 विधायक मिलाकर इस गठबंधन के पास 124 सदस्य हो जाएंगे, जो बहुमत से ज्यादा हैं। इसके अलावा खबर है कि इस गठबंधन में कांग्रेस और कम्यूनिस्ट पार्टी भी शामिल हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के 19 और कम्यूनिस्ट पार्टी के 12 अन्य विधायकों को मिलाकर गठबंधन के पास बहुमत से कहीं ऊपर 155 विधायक होंगे। इसके अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के चार अन्य विधायकों का भी उन्हें साथ मिल सकता है।

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