मुंबई। बीजेपी ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया तो महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल आ गया। हर किसी को यही अंदाज़ा था कि शिदे सूबे के डिप्टी सीएम तो वहीं देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शपथ से कुछ घंटे पहले खुद देवेंद्र मीडिया के सामने आए और कभी ‘ऑटो चालक’ रहे एकनाथ शिंदे को बतौर महाराष्ट्र का अगला सीएम बनाए जाने का ऐलान कर सबको चकित कर दिया। सूत्रों की मानें तो इस पूरे सियासी घटना के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहम रोल निभाया। उनके इस दांव के पीछे मराठा राजनीति के पवार के पॉवर और उद्धव ठाकरे के इमोशन के तोड़ के तौर पर देखा जा रहा है।
शिवसेना में हुई थी बगावत
एमएलसी चुनाव के बाद शिवसेना में बगापत हो गई। पार्टी के नंबर दो नेता रहे एकनाथ शिंदे करीब 34 से ज्यादा शिवसेना के विधायकों के साथ गुजरात चले गए। कुछ दिन के बाद शिंदे गुट सूरत से असम के लिए चला गया। इसके बाद शिवसेना के एक-एक कर करीब 40 से ज्यादा विधायक असम पहुंच गए और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाए जाने का ऐलान कर दिया। शिवसेना सुप्रीम कोर्ट गई, लेकिन वहां से हार मिलने के बाद उद्व ठाकरे ने बतौर सीएम पद से रिजाइन कर दिया। इसके बाद महाराष्ट्र के अगले सीएम के तौर पर देवेंद्र फडणवीस के नाम आगे चल पड़ा।
पूरा सीक्रेट था मिशन
गुरुवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात के बाद देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने ऐलान किया कि एकनाथ शिंदे आज शाम साढ़े सात बजे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। राज्यपाल ने शाम को एकनाथ शिंदे को सीएम और देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलवाई। इस सियासी खेल की जानकारी जैसे ही राजनीतिक दलों को हुई तो सब चकित रह गए। सूत्र बताते हैं कि, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकनाथ शिंदे के नाम पर मुहर लगाई थी। सूत्र बताते हैं कि ये पूरा घटनाक्रम सीक्रेट था और इसकी जानकारी खुद देवेंद्र फडणवीस को भी नहीं थी।
इस वजह से लगाया दांव
एकनाथ शिंदे मराठा हैं। महाराष्ट्र में 31 फीसदी मराठा वोटर हैं। बीजेपी काफी वक्त से किसी मराठा नेता की तलाश में थी। देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया जाता तो शिवसेना कह सकती थी कि मराठा के ऊपर एक ब्राह्मण को तवज्जो दी गई। वो एकनाथ से पूछ सकती थी कि जब तुम्हें आम मंत्री ही बने रहना था तो तुमने हमसे बगावत क्यों की। पिछले कई दिनों से संजय राउत जैसे दावा कर रहे थे कि बीजेपी किसी हाल में एकनाथ शिंदे को सीएम नहीं बनाएगी। ऐसे में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाते ही बीजेपी ने शिवसेना के विरोध की सारी सियासत की हवा निकाल दी। टेनिस की ज़बान में कहें तो इस एक फैसले ने शिवसेना के विरोध की राजनीति का गेम सेट मैच कर दिया।
महराष्ट्र की राजनीति पवार इर्द गिर्द घूमती रही
महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा क्षत्रप शरद गोविंद राव पवार एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने पचास साल से लगातार राजनीति में अपनी अहमियत और महत्व को बरकरार रखा है। नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष हैं और राज्यसभा में पार्टी के नेता शरद पवार की शख्सियत इतनी बड़ी है कि महराष्ट्र की राजनीति उनके इर्द गिर्द घूमती रही है। चाहे वो सत्ता में हों या फिर उससे बाहर लेकिन पवार की पावर पॉलिटिक्स हर पार्टी समझती है। इसकी प्रशंसा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं। अब बीजेपी ने जिस तरह से एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया है, इससे पवार के पॉवर पर जरूर असर पड़ सकता है।
ऐसा रहा राजनीतिक सफर
पिछले पचास साल से लगातार प्रदेश की राजनीति में अंगद की तरह पैर जमाए शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर तीन बार शपथ ले चुके हैं। साल 2004 से लेकर 2014 तक वो मनमोहन सिंह की कैबिनेट में कृषि मंत्री रहे। इसके अलावा पवार केंद्र में रक्षा मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं। मौजूदा मोदी सरकार ने उन्हें साल 2017 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया है जो देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मानित सिविलियन पुरस्कार माना जाता है। शरद पवार पहली बारइ साल 1967 में एमएलए चुने गए। तब उनकी उम्र महज 27 साल थी। शरद पवार लगातार उसके बाद बुलंदियों को छूते रहे और तत्कालीन दिग्गज नेता यशवंत राव चव्वहाण उनके राजनीतिक संरक्षक के तौर पर उन्हें आगे बढ़ाते रहे।
इस वजह से डिप्टी सीएम बनाए गए देवेंद्र
एकनाथ शिंदे के सीएम बनाए जाने पर लोग जितना हैरान हुए उससे ही ज़्यादा उन्हें इस बात पर हैरानी हुई कि दो बार के सीएम फडणवीस डेप्युटी सीएम कैसे बन गए। इसके पीछे बीजेपी की सेंट्रल लीडरशिप का अहम किरदार रहा है। लीडरशिप को लगा कि शिंदे को सीएम बनाकर वो मराठा वोटों को भी साध लेगी और शिवसेना के किसी काउंटर अटैक को भी ध्वस्त कर देगी। वैसे भी फडणवीस अभी 50 के हैं। उम्र उनके पक्ष में हैं। उनके पास दोबारा सीएम बनने के लिए बहुत उम्र पड़ी है। इसलिए आलाकमान ने जब उन्हें सारी स्थिति समझाई होगी तो वो आखिरकार मान गए होंगे।
तीन चुनाव पर नजर
बीजेपी ने ’सेना के एक मुख्यमंत्री’ को हटाकर एक शिवसैनिक को ही सीएम बना दिया। ऐसा कर भाजपा ने ये संदेश दिया कि भाजपा अपने सहयोगी दलों का ख्याल रखती है। अब पार्टी इसकी मदद से आगामी बीएमसी चुनाव में बड़ा सियासी खेल कर सकती है। बीएमसी पर शिवसेना का 25 सालों से कब्जा है। जानकारों की मानें तो अब उद्धव ठाकरे अपने पिता बालासाहब ठाकरे के नाम पर हमदर्दी या सियासी फायदा नहीं ले सकेंगे। भाजपा के एक नेता ने कहा कि यह उद्धव को हटाने का एकमात्र तरीका था। इसमें भाजपा की सुरक्षा और सियासी हित शामिल है। अब शिंदे शिवसेना में बाल ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ाएंगे। साथ ही वह भाजपा के लिए भी वफादार बने रहेंगे। साथ ही 2024 लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में भी ज्यादा वक्त बाकी नहीं रह गया है। तब तक शिवसेना अपनी कठिनाईयों से उबर नहीं पायेगी।