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ElectionCommissionDecision:शिव सेना पर कब्जे की लड़ाई में जीते मुख्यमंत्री शिंदे उद्धव को मशाल जलाने की मजबूरी पार्टी पर कब्जे की लड़ाई में EC का फैसला शिंदे के पक्ष में

उद्धव से छिन गया शिवसेना का नाम शिंदे ने छीन लिया तीर और कमान
शिवसेना पर अब शिंदे का कब्जा उद्धव अब जलाएंगे बर्बादी की मशाल
एकलव्य ने छीनी गुरु की विरासत 38 साल में बदल गया शिवसेना का निजाम ..

विरासत की जंग में उद्धव ठाकरे हार गए ..आधिकारिक रूप से आज शिवसेना ठाकरे परिवार से अलग हो गई ..शिवसेना ठाकरे परिवार की जागीर नहीं है ये कहते हुए आयोग ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ फैसला सुना दिया ..
एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच शिवसेना के अधपत्यऔर चुनाव चिन्ह पर दावे की लड़ाई पर आज विराम लग गया आयोग ने तय कर दिया शिवसेना और उसका चुनाव चिन्ह तीर कमान अब एकनाथ शिंदे का होगा… आखिरकार बाला साहब ठाकरे के शिष्य ने अपने गुरु की विरासत पर कानूनी अधिकार हासिल कर ही लिया लेकिन बड़ी दिलचस्प है शिवसेना और उसके तीर कमान की कहानी ..

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बतौर कार्टूनिस्ट बतौर सामना के संपादक बाला साहब ठाकरे ने 50 के दशक से गैर मराठीयों के ऊपर व्यंग और तोहमतों के जमकर तीर कमान चलाएं .. उनका एक-एक बयान उत्तर भारतीयों के खिलाफ की गई बदजुबानी किसी जहर बुझे तीर से कम नहीं थी यही वजह थी कि जब बाला साहब ठाकरे को अपना चुनाव चिन्ह तय करना था तब उन्होंने तीर कमान को चुना जब बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की तब उन्होंने चुनाव चिन्ह तीर कमान मांगा लेकिन उसके लिए उन्हें 18 साल इंतजार करना पड़ा लेकिन 18 साल की मेहनत के बाद मिला तीर कमान 38सालों बाद उधव ठाकरे के हाथ से निकल गया…
19 जून 1966 को बाला साहब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी स्थापना के 2 साल बाद शिवसेना को राजनीतिक पार्टी के तौर पर मान्यता मिली लेकिन उसे उसके चुनाव चिन्ह तीर कमान के लिए 18 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा..1985 में मुंबई के नगर निकाय चुनाव में शिवसेना को पहली बार तीर कमान का चुनाव चिन्ह मिला..

लेकिन एकनाथ शिंदे शिवसेना को तोड़कर 40 विधायकों और 12 सांसदों को अपने पाले में करने के बाद शिवसेना पर दावा ठोक दिया चुनाव आयोग में लंबे समय से यह विवाद पेंडिंग चल रहा था लेकिन आखिरकार चुनाव आयोग ने फैसला एकनाथ शिंदे के पक्ष में सुनाया क्योंकि उद्धव ठाकरे के पास केवल 15 विधायक और 6 लोकसभा सदस्य ही है।चुनाव आयोग ने शिवसेना के 2018 के संविधान को असंवैधानिक मानते हुए इस खारिज करते हुए फैसला एकनाथ शिंदे गुट के पक्ष में सुनाया अब आधिकारिक रूप से शिवसेना का नाम और निशान एकनाथ शिंदे गुट के पास आ गया , यानी जो काम बालासाहेब के सबसे चहेते राज ठाकरे नही कर पाए वो एकनाथ शिंदे ने कर दिखाया …

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