जयपुर। गणेश चतुर्थी पर घर से लेकर पंडालों तक गजानन विराजमान हो गए। विधि-विधान के साथ गजानन की पूजा अर्चना की गई। पूरे देश में गजानन की जय-जय कार हो रही है। मंदिरों में सुबह से लेकर देररात तक भक्तों का तांता लगा हुआ है। ऐसे ही एक मंदिर से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं। यहां भक्त पहले आसपास बिखरे पत्थरों से घर बनाते हैं। घर को गजानन के चरणों में चढ़ाते हैं। बदले में उसे भगवान गणेश वैसा ही घर प्रदान करते हैं।
मंदिर का निर्माण करीब 14 सौ वर्ष पहले करवाया गया था। मंदिर का नाम चुंधी गणेश मंदिर है। इसके पीछे का इतिहास भी चौंकाने वाला है। चंवद ऋषि द्वारा यहां 500 वर्ष तक तप किया था इसलिए इस स्थान का नाम चुंधी पड़ा था। ये मंदिर बरसाती नदी के बीचों-बीच बना है जिसके चलते बारिश में यहां मंदिर परिसर में पूरी तरह पानी भर जाता है। ये बरसाती पानी मूर्ति को छूकर ही निकलता है। मूर्ति के बारे में यह मान्यता भी है कि प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी से पहले बारिश होती है और सभी देवता मिलकर गणेशजी का जलाभिषेक करते हैं।
जैसलमेर से 12 किलोमीटर दूर चुंधी स्थित भगवान गणेश मंदिर है। इस मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर के आस-पास बिखरे पत्थरों से अपना मनचाहा घर बनाते हैं। इसके बाद प्रार्थना करते हैं कि जैसा घर उन्होंने मंदिर में बनाया है वैसा ही घर उनका स्वयं का भी जल्दी बना दें। दूर-दूर से आए भक्त यहां भगवान के दर्शनों के बाद पत्थरों से घर बनाते हैं।हर साल गणेश चतुर्थी के दिन भव्य मेला भरता है जिसमें श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने और घर की मनोकामना के साथ आते हैं।
मंदिर के दोनों तरफ दो कुएं हैं। इन कुओं के बारे में कहा जाता है कि इन कुओं में हरिद्वार में बहने वाली मां गंगा का जल आता है। इसके पीछे किवदंती है कि एक श्रद्धालु भक्त के रिश्तेदार हरिद्वार में गंगा स्नान कर रहे थे और वह स्वयं चुंधी के इस कुएं के समक्ष
तपस्या कर रहे थे। स्नान करते समय उनके रिश्तेदार के हाथ से कंगन निकल कर गंगा में बह गया। कंगन बहता-बहता चुंधी आ गया। ऐसे में माना जाता है कि वर्ष में एक बार इन कुओं में गंगा का पानी प्राकृतिक तौर पर आ जाता है। गणेश जी के मंदिर के सामने राम दरबार का मंदिर है।