गोरखपुर। सावन का पवित्र महिना चल रहा है। मंदिर से लेकर शिवालयों में बमब-बम भोले के जयकरों की गूंज सुनाई दे रही है। भक्त सोमवार को वृत रखकर शिव के दरवार में जाकर हाजिर लगाकर मन्नत मांग रहे हैं। ऐसा ही एक शिवमंदिर सीएम योगी आदित्यनाथ के गृहजनपद गोरखपुर में हैं। जिसके अद्भुत कहानी है। बताया जाता है, यहां नीलकंठ महादेव भू-गर्भ से प्रकट हुए थे। मुगलशासक महमूद गजनवी को जब इस चमत्कारी शिविंलग के बारे में पता चला तो उसने मंदिर को ढहाने का आदेश दे दिया। गजनवी के सैनिकों मंदिर ने मंदिर का ध्वस्थ कर दिया, पर शिवलिंग को हाथ नहीं लगा पाए। गुस्सए मुगलशासक ने शिवलिंग पर कलमा खुदवा दिया। इस शिवलिंग पर अरबी भाषा में ‘लाइलाह इलाल्लाह मोहम्मद उर रसूलल्लाह‘ लिखा है। शिवलिंग पर कलमा खुदा होने के बावजूद लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं आई।
म्ंदिर का इतिहास
गोरखपुर से 30 किलोमीटर दूर खजनी कस्बे के सरया तिवारी गांव में सदियों पुराना नीलकंठ महादेव का शिव मंदिर है। मंदिर के पुजारी आचार्य अतुल त्रिपाठी बताते हैं कि हजारों साल पुराने इस शिव मंदिर में ऐसा शिवलिंग है, जिसकी मान्यता है कि यह शिवलिंग भू-गर्भ से स्वयं प्रकट हुआ था। शिवभक्त आज भी यहां पर पूजा-पाठ के साथ जल और दुग्धाभिषेक के लिए आते हैं। सावन में तो इस मंदिर की महत्ता और भी बढ़ जाती है. मंदिर के पुजारी आचार्य अतुल त्रिपाठी बताते हैं, जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया, तो यह शिवमंदिर भी उसके क्रूर हाथों से अछूता नहीं रहा। उसने मंदिर को ध्वस्त कर दिया, लेकिन, शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। जिसके बाद गजनवी ने शिवलिंग पर कमला खुदवा दिया, जिससे हिन्दू इसकी पूजा नहीं कर सकें।
बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट किया था
पुजारी बताते हैं, महमूद गजनवी और उसके सेनापति बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट किया था। उन्होंने सोचा था कि वह इस पर कलमा खुदवा देगा, तो हिन्दू इसकी पूजा नहीं करेंगे। लेकिन, महमूद गजनवी के आक्रमण के सैकड़ों साल बाद भी इस हिन्दू श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के साथ दूध और चंदन आदि का लेप भी लगाते हैं। इस मंदिर पर छत नहीं लग पाती है। कई बार इस पर छत लगाने की कोशिश की गई. लेकिन, वो गिर गई। पुजारी के मुताबिक, सावन मास में इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ति की मन्नतें भी मांगते हैं।
तालाब का भी महत्व
पुजारी ने बताया कि मंदिर के पास में ही एक तालाब भी है। खुदाई में यहां पर लगभग 10-10 फीट के नर कंकाल मिल चुके हैं, जो उस काल और आक्रांताओं की क्रूरता को दर्शाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर के बगल में स्थित तालाब के जल को छूने से एक कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा का कुष्ठ ठीक हो गया था और तभी से लोग चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिये आकर यहां पांच मंगलवार और रविवार स्नान करते हैं। पुजारी बताते हैं कि, सैकड़ों बीमार भक्त यहां आते हैं और पोखरे को जल को छूकर बीमारी से मुक्ति पाते हैं।
लोगों की आस्था का केन्द्र
नीलकंठ महादेव का यह मंदिर सदियों से हिन्दू धर्म के लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की इस मंदिर में विशेष आस्था है। नीलकंठ महादेव का ये मंदिर सदियों से अपने भीतर मुस्लिम आक्रमणकारियों के क्रूर इतिहास को समेटे आज भी शान से हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। भगवान शिव को महादेव के नाम से भी पुकारा जाता है। यही वजह है कि सरया तिवारी गांव के इस शिवलिंग को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां के लोगों का मानना है कि इतना विशाल शिवलिंग पूरे भारत में सिर्फ यहीं पर है।