वाराणसी। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर 353 साल से विवाद चल रहा है। यहां की सिविल कोर्ट के आदेश के बाद मस्जिद के साथ ही तहखाने के सर्वे का काम जारी है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि, इस तहखाने में ही स्वयंभू आदिविशेश्वर स्थित हैं और इसे 11वीं शती में कुतुबुद्दीन एबक ने तोड़वाया था। हिन्दुस्तान में 1595 में आकाल पड़ा। मुगल शासक अकबर के आदेश पर उनके नवरत्नों में एक राजा टोडरमल ने अपने बेटे के माध्यम से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उसी दौरान गर्भगृह में तहखाना बना दिया गया था।
कुतुबद्दीन एबक ने तुड़वाया था मंदिर
इतिहासकार बताते हैं, 11वी शताब्दी के वक्त कुतुबद्दीन एबक बनारस पहुंचा था। उसके साथ नाव के जरिए सैकड़ों सैनिक काशी में दाखिल हुए थे। कुतुबद्दीन एबक के कहने पर सैनिकों ने आदिविशेश्वर सहित कई अन्य मंदिरों के शिखर को तोड़ दिया। मंदिर के अवशेष 15वीं शताब्दी तक ज्यों के त्यों पड़े रहे। 15वीं और 16वीं शताब्दी में बिहार में साम्राज्य स्थापित कर तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल और सेनापति राजा मान सिंह दिल्ली लौटते समय बनारस रुके थे। टोडरमल ने काशी के उद्भट विद्वान पं. नारायण भट्ट से अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्धकर्म कराया।
रामेश्वर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया
इतिहासकार प्रोफेसर रमेशचंद्र बाजपेयी बताते हैं कि, टोडरमल ने नारायण भट्ट को देश में अकाल की बात बतायी। तब नारायण भट्ट ने कहा था कि यदि अकबर आदि विशेश्वर के क्षतिग्रस्त मंदिर का पुनरुद्धार करा दें भारी बारिश होगी। टोडरमल्ल दिल्ली पहुंचे और अकबर से इसका जिक्र किया। 1584 में अकबर ने मंदिर के जीर्णोद्धार करने का एलान किया और पत्र काशी भिजवाया। इसके 48 घंटे के अंदर भारी बारिश हुई। मुगल बादशाह के आदेश के बाद टोडरमल ने अपने बेटे रामेश्वर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। रामेश्वर उस समय जौनपुर के सूबेदार थे।
तब से इसे तहखाने के रूप में जाना जाने लगा
इतिहासकार बताते हैं, 1585 में रामेश्वर ने क्षतिग्रस्त अष्टकोणीय मंदिर के चारों ओर सात फीट ऊंची दीवार खड़ा कर उसे पत्थर की पटिया से ढंकवा दिया। इसके ऊपर विशाल मंदिर बनवाया था। अंदर पटिया से ढकने के बाद अष्टकोणीय स्थान के बीच में दीवार खड़ी कर दी गई जिससे एक कमरे का रूप बन गया। उसे तहखाने के रूप में जाना जाने लगा। तहखाने को अंग्रेजों ने दो भागों में बांट दिया था। अंग्रेज के शासनकाल के वक्त तहखाने को लेकर विवाद शुरू हुआ और 32 साल पहले वाराणसी कोर्ट में इसको लेकर याचिका दाखिल हुई।
‘हिस्ट्री ऑफ बनारस’ में विशेश्वर मंदिर का जिक्र
राजा टोडरमल के समय के स्थापत्य के अनुसार मंदिर के पूरब-दक्षिण में अविमुक्तेश्वर, पूरब-उत्तर में गणेश, पश्चिम-उत्तर में दंडपाणी और पश्चिम-दक्षिण में शृंगार गौरी आदि स्थित हैं। मंदिर के चारों ओर मंडप बने थे जिनके नाम मुक्ति, ज्ञान, ऐश्वर्य और शृंगार रखे गए थे। बीएचयू में प्राचीन इतिहास व संस्कृति विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष रहे डॉ. एस. अल्टेकर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ बनारस’ आदि विशेश्वर मंदिर का जिक्र किया है।