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Shardiya Navratri 2022 : अकबर और अंग्रेजों ने किया था मां ज्वालाजी की पवित्र ज्योतियां बुझाने का प्रयास, माता रानी के चमत्कार से मुगल शासक और ब्रिटिश कलेक्टर का चकनाचूर हो गया था घमंड

कांगड़ा। हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं की भूमि कहा जाता है। नवरात्रि के पावन पर्व पर यहां के देवी मंदिरों में सुबह से लेकर देरशाम तक मातारानी के जयकारों की गूंज से पूरा राज्य सराबोर है। ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर कांगड़ा जिले में हैं। यहां के ज्वालामुखी में मां ज्वाला की अखंड ज्योतियां लगातार जल रही हैं। इन ज्योतियों के दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और आत्मिक शांति के साथ-साथ पाप से मुक्ति मिलती है। अलौकिक ज्योतियां साक्षात मां का स्वरूप हैं जो पानी में भी नहीं बुझती। कालांतर से लगातार जल रही हैं। इस मंदिर में मां के सम्मान में एक दो नहीं बल्कि दिन में पांच आरतियां होती हैं। मां के इस अलौकिक मंदिर से जुड़ी कई कहानियां हैं।

छत्र किसी अज्ञात धातु में बदल गया
इन्हीं कहानियों में से एक मुगलशासक अकबर से जुड़ी हैं। बताया जाता है कि, अकबर ने मां की पवित्र ज्योतियों को बुझाने के लिए अपनी सेना को आदेश दिया था। अकबर की सेना ने कई किलोमीटर लंबी नहर खोदी। अकबर की सेना ज्योतियों को नहीं बुझा पाई। सेना के बड़े अफसर अकबर से मिले और पूरी हकीकत बताई। पुजारी बताते हैं कि माता रानी के अदभुत शक्ति के आगे नतमस्तक होकर अकबर ने दिल्ली से ज्वालाजी तक की पैदल यात्रा करके सवा मन सोने का छत्र माता के श्री चरणों में अर्पण किया। अकबर को इस बात का घमंड हुआ कि उस जैसा सोने का छत्र कोई नहीं चढ़ा सकता। लेकिन माता ने उसका छत्र स्वीकार नहीं किया व अर्पित करते ही छत्र किसी अज्ञात धातु में बदल गया। आज तक कई विज्ञानियों की जांच के बाद भी धातु का पता नहीं चल सका है।

अंग्रेज भी नहीं हो पाए सफल
मंदिर के पुतारी बताते हैं कि, मां की पवित्र ज्योतियों को बुझाने के लिए अंग्रेजों ने भी कोशिश की। लेकिन सफल नहीं हो सके। पुजारी बताते हैं कि ब्रिटिश सरकार के कलेक्टर को मां के चमत्कार के बारे में जानकारी हुई तो उसने पुलिस को मौके पर भेजा। कलेक्टर ने ज्योतियों को बुझाए जाने का आदेश दिया था। कलेक्टर के आदेश पर पुलिस मंदिर परिसर तक पहुंची, लेकिन ज्योतियों को नहीं बुझा सकी। इसके बाद अंग्रेज सेना के अफसरों ने भी कई प्रयास किए, पर सफलता उन्हें भी नहीं मिली। थक-हार का कलेक्टर माता रानी के दरबार पर माथा टेकने को विवश हुआ था। पुजारी बताते हैं कि, नवरात्रि में सुबह से लेकर देरशाम तक भक्तों का तांता लगा रहता है। जो भक्त माता रानी के दर पर आता है, उसकी सारी मन्नत पुरी होती हैं।

माता ज्वालाजी देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक
पुजारी बताते हैं कि, माता ज्वालाजी देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पुजारी के मुताबिक, राजा दक्ष प्रजापति द्ने ब्रह्मांड के सबसे बड़े यज्ञ का आयोजन किया। भगवान शिव के तिरस्कार के बाद माता सती ने खुद को हवन कुंड में होम कर दिया, उसके बाद ज्वालामुखी शक्तिपीठ अस्तित्व में आया था। पौराणिक इतिहास की मानें तो भगवान शिव को जब इस घटनाक्रम का पता चला था तब उन्होंने सती के शरीर को कंधों पर उठाकर ब्रह्मांड की परिक्रमा शुरू कर दी थी। शिव के तांडव से बचने की खातिर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के अंग भंग कर दिए तो जहां जहां शरीर का जो जो हिस्सा गिरता गया शक्तिपीठ बनता गया।

ज्वालामुखी में माता की जिव्हा गिरी थी
पुजारी बतो हैं कि, ज्वालामुखी में माता की जिव्हा गिरी थी। जिव्हा में ही अग्नि तत्व बताया गया है, जिससे यहां पर बिना तेल, घी के दिव्य ज्योतियां जलती रहती हैं। मंदिर के गर्व गृह में सात पवित्र ज्योतियां हजारों सालों से भक्तों की आस्था का केंद्र बनी हुई हैं। पुजारी बताते हैं कि, मंदिर निर्माण का श्रेय कांगड़ा व पंजाब के राजा को जाता है। सबसे पहले राजा भूमि चंद कटोच ने निर्माण करवाया था, उसके बाद पंजाब के राजा रणजीत सिंह तथा हिमाचल के राजा संसार चंद ने 1835 में ज्वालाजी मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया था।

साल में चार बार नवरात्रि पर्व
मां के मंदिर में सुबह पांच से छह बजे तक मंगल आरती होती है। 11.30 से 12.30 दोपहर की आरती, शाम सात से आठ बजे तक संध्या कालीन आरती, रात नौ बजे से साढ़े नौ शयन आरती तथा साढ़े नौ से 10 बजे शैय्या आरती का आयोजन होता है। समय सारिणी में सर्दियों व गर्मियों में परिवर्तन होता है। मंदिर में साल में चार बार नवरात्र का आयोजन होता है, जबकि एक बार श्रावण अष्टमी मेलों का आयोजन होता है। ज्वालाजी शक्तिपीठ में जून माह में आयोजित होने वाले गुप्त नवरात्रों की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को माता का प्रकटोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मंदिर में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर को सजाया जाता है।

मंदिर जाने के लिए ये हैं रास्ते
कांगड़ा के गगल हवाई अड्डे में पहंचने के बाद यहां से टैक्सी अथवा बस सेवा से भी मंदिर पहुंचा जा सकता है। इसी तरह से पठानकोट जोगिंद्रनगर रेलवे लाइन में कांगड़ा या समेला आदि स्टेशनों पर उतर कर मां के दरबार आसानी से पहुंचा जा सकता है। जबकि दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर आदि स्थानों से बसे यहां के लिए चलती हैं। मंदिर के साथ ही ज्वालामुखी बस अड्डा है, इस लिए यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को कोई ज्यादा परेशानी नहीं होती।

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