समाजवादी पार्टी से विधायक इरफान सोलंकी को बुधवार सुबह कानपुर जेल से महाराजगंज जेल में शिफ्ट कर दिया गया। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पुलिस इरफान को कानपुर जेल से लेकर महाराजगंज जेल के लिए निकली थी। इरफान जब जेल से बाहर निकले तो उनकी मां, पत्नी को देखकर भावुक हो गए। इरफान फफक कर रो पड़े। यह नजारा देखकर वहां परिवार के सदस्यों की भी आंखे नम हो गईं।
सपा विधायक इरफान सोलंकी विवादित प्लाट में आगजनी, फर्जी आधार कार्ड से हवाई यात्रा और बांग्लादेशी नागरिक को प्रमाणपत्र देने के आरोप लगे हैं। जेल अधीक्षकों को शासन ने सख्त निर्देश दे रखे हैं कि विधायक को कोई विशेष सुविधा नहीं दी जाएगी। महाराजगंज जेल में भी उन्हें आम कैदियों या जेल मैनुअल का सख्ती से पालन करते हुए रखा जाएगा। आईजी और डीआईजी जेल इसकी खुद मॉनिटरिंग करेंगे।
कानपुर जेल प्रशासन ने 13 दिसंबर को विशेष सचिव को पत्र भेजा था कि इरफान सोलंकी की जेल बदल दी जाए। जिला कारागार अधीक्षक बीडी पांडेय ने बताया कि जेल में सपा विधायक के मामले के कई आरोपी बंद हैं। बांग्लादेशी नागरिक, नूरी शौकत का पिता समेत तीन हिस्ट्रीशीटर भी इसी जेल में बंद हैं। इन पर आगजनी के मामले में इरफान का साथ देने का आरोप है। वहीं जेल में कई बड़े अपराधियों के साथ विधायक का बंद होना काफी संवेदनशील है, उनकी सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। इरफान के शहर से दूर रहने से बदल सकते हैं सपा के समीकरण।
आगजनी सहित कई मामलों में जेल में बंद चल रहे सपा विधायक इरफान सोलंकी को अब कानपुर से पूर्वांचल की जेल महाराजगंज में भेज दिया गया है। कहा जा रहा है कि ऐसे में उनकी गैर मौजूदगी से सपा की स्थानीय राजनीति के समीकरण बदल सकते हैं। खासकर मुस्लिम राजनीति की गणित गड़बड़ा सकती है।
इरफान सोलंकी समाजवादी पार्टी से तीन बार से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं। मोदी की लहर में भी सपा ने यहां से जीत हासिल किया। ऐसे में कहा जा रहा है कि अब आने वाले चुनाव के परिणाम भी दूसरे होंगे। दरअसल मुस्लिम मतदाताओं के बीच इरफान सोलंकी ने अपनी अलग रणनीति बनाई हुई थी।
यह इस वजह से भी कहा जा सकता है, क्योंकि नगर निकाय चुनाव में सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र के वार्डों में प्रत्याशी कौन होगा, इसका फैसला करने के लिए पार्टी ने इरफान को ही अधिकृत किया है। इसी वजह से तीन दिन पहले पार्टी का एक दल उनसे जेल में भी मिला था। अब यहां से दूर रहने पर विधायक का राजनीति गतिविधियों में सीधे दखल कम होने की वजह से असर पड़ सकता है। इसका फायदा दूसरे राजनीतिक दलों को हो सकता है।