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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जारी की अपने संघर्ष की रुला देने वाली स्टोरी के साथ मां की लोरी, डेढ़ कमरे के घर में न बाथरूम था न खिड़की और छत से टपकता था पानी

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले अपनी जमापूंजी के बारे में देश की जनता को जानकारी दी थी। साथ ही अपने कैबिनेट के मंत्रियों से भी कहा था कि, वह भी अपनी ‘अर्थ’ के बारे में आवाम को रूबरू कराएं। जिसके बाद कई मंत्रियों ने अपनी संपत्ति के बारे में बताया था। अब 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 72 वर्ष के हो जाएंगे। इससे पहले उन्होंने अपनी मां हीराबेन मोदी के जन्मदिन पर ’मां’ शीर्षक से एक ब्लॉग लिखा था। इस ब्लॉग में उन्होंने अपने बचपन और संघर्ष के दौरान की तमाम यादों के साथ ही जीवन में मां के महत्व को भी बताया। किस तरह से डेढ़ कमरे का घर, जिस पर न बाथरूम-न खिड़की और छत से टपकता था पानी का विस्तार से जिक्र किया है।

17 सितंबर 1950 को गुजरात के गरीब परिवार में लिया जन्म
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात के महेसाणा जिले के वडनगर मे हुआ था। वे ‘अति पिछड़ा वर्ग’ परिवार से आते हैं, जो समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों में से है। पीएम ने सबसे पहले आरएएस ज्वाइन की। फिर बीजेपी की सदस्यता ली। उन्होंने गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एमए की शिक्षा ली। पीएम नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2001 से मई 2014 तक लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद संभाला। 2014 और 2019 के संसदीय चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने दोनों अवसरों पर पूर्ण बहुमत हासिल किया। आखिरी बार 1984 के चुनावों में किसी राजनीतिक दल ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था।

मां के 100वें जन्मदिन पर लिखा था ब्लॉग
मां हीराबेन के 100वें जन्मदिन पर पीएम मोदी ने गांधीनगर जाकर मां का आशीर्वाद भी लिया था। पीएम मोदी ने अपनी मां हीराबेन मोदी के जन्मदिन पर ’मां’ शीर्षक से एक ब्लॉग लिखा था। इस ब्लॉग में उन्होंने अपने बचपन और संघर्ष के दौरान की तमाम यादों के साथ ही जीवन में मां के महत्व को भी बताया। पीएम मोदी ने लिखा कि, बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं। बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं। इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं।

मचान हमारे घर की रसोई थी
पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे लिखा कि, वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे, वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे। उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे, इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।

भजन के साथ सुनाती थीं लोरी
पीएम लिखते हैं, मां भी समय की बहुत पाबंद थीं। उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी। सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं। नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है “जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे” वो उन्हें बहुत पसंद है। एक लोरी भी है, “शिवाजी नु हालरडु”, मां ये भी बहुत गुनगुनाती थीं। उन्होंने आगे लिखा कि, मां कभी अपेक्षा नहीं करती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें। वो कभी मदद के लिए, उनका हाथ बंटाने के लिए नहीं कहती थीं।

तालाब में तैरने का बड़ा शौक था
पीएम लिखते हैं, मां को लगातार काम करते देखकर हम भाई-बहनों को खुद ही लगता था कि काम में उनका हाथ बंटाएं। मुझे तालाब में नहाने का, तालाब में तैरने का बड़ा शौक था। इसलिए मैं भी घर के कपड़े लेकर उन्हें तालाब में धोने के लिए निकल जाता था। कपड़े भी धुल जाते थे और मेरा खेल भी हो जाता था। घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं।

जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता
पीएम लिखते हैं, बारिश में हमारे घर में कभी पानी यहां से टकपता था, कभी वहां से। पूरे घर में पानी ना भर जाए, घर की दीवारों को नुकसान ना पहुंचे, इसलिए मां जमीन पर बर्तन रख दिया करती थीं। छत से टपकता हुआ पानी उसमें इकट्ठा होता रहता था। उन्होंने आगे लिखा कि, उन पलों में भी मैंने मां को कभी परेशान नहीं देखा, खुद को कोसते नहीं देखा। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाद में उसी पानी को मां घर के काम के लिए अगले 2-3 दिन तक इस्तेमाल करती थीं। जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है।

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