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चंबल का ये असली ‘गब्बर सिंह’ पुलिस-पब्लिक की काटता था नाक और कान, 22 बच्चों की हत्या के बाद डकैत के डेथ वारंट पर इस प्रधानमंत्री ने किए दस्तखत

भोपाल। आजादी से पहले देश में एक से बड़कर एक खूंखार डकैत हुए। चंबल और बीहड़ के साथ पाठा में बैठकर समाज के खलनायक बंदूक के दम पर अपनी खुद की सरकार चलाते थे। ऐसा ही एक डाकू गबरा उर्फ गब्बर सिंह था। जो तांत्रिक के कहने पर आमलोगों के साथ पुलिसवालों की नाम और कान काटता था। इसके बाद उनकी हत्या कर देता। असली गब्बर ने 22 बच्चों को लाइन पर खड़ा कर गोलियों से भून दिया था। तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने डाकू के डेड सार्टिफिकेट पर हस्ताक्षर कर जल्द से जल्द उसके खात्में का आदेश दिया था।

कौन था गबरा उर्फ गब्बर सिंह
मध्य प्रदेश के भिंड जनपद में 1926 को डांग गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ था। माता-पिता ने उसका नाम प्रीमत सिंह रखा, लेकिन प्यार से उसे गबरा कहकर बुलाते थे। गबरा के पिता खेती किसानी कर परिवार का पेट पालते थे। घर की आर्थिक हालत खराब होने पर गबरा के पिता पत्थर की खदानों में मजदूर करने लगे। जब गबरा 15 16 साल का हुआ, पिता ने उसे भी खदान में मजदूरी के लिए लगा दिया। इसी बीच एक जमीन का विवाद हुआ। गांव के 4 रसूखदार लोगों ने गबरा के पिता को बुरी तरह से पीटा। पिता ने पंचायत बुलाई तो पंचायत ने गबरा के पिता की जमीन ही कब्जे में ले ली। ये सब गबरा को बर्दाश्त नहीं हुआ। मौका पाते ही गबरा ने पिता को मारने वालों में से 2 लोगों की हत्या कर दी और फरार हो गया।

बीहड़ में रखे कदम, बना खूंखार डाकू
हत्या के मामले में पुलिस गबरा की तलाश कर रही थी तो वह चंबल के बीहड़ों में पहुंच गया। गबरा ने चंबल के बड़े डाकू कल्याण सिंह की गैंग ज्वाइन कर ली और बीहड़ को ही अपना घर बना लिया। गबरा ने कुछ दिन तक कल्याण से डाकू बनने के गुर सीखे और खुद की गैंग बना ली। अब गबरा हर दिन अपहरण, लूट और हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम देने लगा था। उसका गैंग बड़ा होता जा रहा था। पुलिस उसके पीछे पड़ी थी। पर गबरा पुलिस के हत्थे नहीं लगा। उसने यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई जिलों में अनगिनत वारदातों को अंजाम दिया। घरों में डाका के साथ गबरा लोगों का अपहरण का उनके परिवारवालों से मुंहमांगी कीमत वसूलने लगा।

116 लोगों की काटी नाक-कान
एक तांत्रिक ने उससे कहा, “अगर तुम 116 लोगों की नाक और कान काट कर अपनी कुल देवी को चढ़ाओगे तो पुलिस तुमको कभी नहीं पकड़ पाएगी और ना ही कभी तुम्हारा एनकाउंटर होगा। गबरा अंधविश्वासी था। इसके बाद उसने एक नियम बना लिया कि जिसकी भी हत्या करेगा, उनके नाक और कान काट लेगा। जिनका अपहरण करता था उनके भी नाक-कान काटकर जिंदा छोड़ देता था। जब भी पुलिस से मुठभेड़ होती, उनको मारता और उनके भी नाक-कान काट देता था। कुछ ही दिनों में उसने 100 से ज्यादा लोगों के नाक और कान काट लिए थे। चंबल के आस-पास के हिस्से में जब भी कोई व्यक्ति बिना नाक या कान के दिखता था तो लोग मान लेते थे कि ये गब्बर सिंह का शिकार हुआ है।

इस वजह से बच्चों की हत्या
भिंड, ग्वालियर, ललितपुर, सागर, पन्ना और धौलपुर जैसे कुल 15 जिलों के लोगों के अंदर उसका इतना खौफ था कि जब भी कोई गब्बर का नाम ले लेता तो दूसरे लोग चुप हो जाते और वहां से चले जाते। साल 1957 तक थाने में उसके खिलाफ 200 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो चुके थे। गब्बर को पकड़ने के लिए पुलिस के पास मुखबिरों के अलावा और कोई दूसरा ऑप्शन नहीं था। पुलिस हर दिन उसको पकड़ने के नए-नए तरीके खोजने में जुटी रहती थी। एक बार पुलिस ने कुछ बच्चों को अपना मुखबिर बना लिया था, क्योंकि जब डाकू गांव आते थे तो बच्चों की नजर उन पर रहती थी। बच्चे पुलिसवालों को गब्बर के मूवमेंट की जानकारी दे दिया करते थे। जब गब्बर को इस बात की जानकारी लगी तो उसने शक की बिना पर भिंड के पास एक गांव के 21 बच्चों को एक साथ गोली मार दी थी।

फिर गब्बर के खात्मे का बना प्लान
इस घटना के बाद देश के कोने-कोने में बच्चों के अंदर गब्बर सिंह के नाम का खौफ पैदा हो गया था। बच्चों के मां-बाप उनसे अपनी बात मनवाने के लिए उन्हें गब्बर सिंह के आने का डर दिखाने लगे थे। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को जब 21 बच्चों की हत्या की जानकारी नेहरू को लगी तो उनकी रातों की नींद उड़ गई थी। उन्होंने कई बड़े अफसरों की मीटिंग बुलाई और पूछा, “गब्बर सिंह कौन है। उस खौफनाक घटना के बाद नेहरू भी बेहद चिंतित हो गए थे और उन्होंने किसी भी हालत में गब्बर का खात्मा करने के आदेश जारी कर दिए थे। गब्बर सिंह पर सरकार ने 50 हजार इनाम रख दिया। उस समय गब्बर इकलौता ऐसा डाकू था जिसके ऊपर इतना ज्यादा इनाम रखा गया था।

13 नवबंर 1959 को मारा गया डकैत
13 नवंबर, 1959 को आईजी केएफ रुस्तम समेत डीएसपी मोदी और पूरी एसटीएफ टीम छिप कर हाईवे पर तैनात हो जाती है। जैस ही गब्बर वहां से निकलता है पुलिस गोलियां बरसाना शुरू कर देती है। गब्बर की गैंग किसी तरह छुपने का एक अड्डा तलाशती है और पुलिस पर फायरिंग शुरू कर देती है। गब्बर छुप कर फायरिंग कर रहा होता है। मोदी उस पर बैक टु बैक 2 ग्रेनेड फेकते हैं। ग्रेनेड के फटने से गब्बर का जबड़ा फट जाता है। फिर आईजी रुस्तम उसके करीब जाकर उसको गोलियों से भून देते हैं। इस मुठभेड़ में गब्बर समेत उसकी गैंग के 9 डाकू मारे जाते हैं।

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