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दगंल फिल्म देखने के बाद मां के इस डायलॉग के बाद ‘छोरी’ ने कर दिया कमाल, देश की पहली महिला एनडीए टॉपर शनन ढाका बनी इंडियन आर्मी में लेफ्टिनेंट

नई दिल्ली। एनडीए परीक्षा पास करने के साथ ही कठिन ट्रेनिंग के बाद इंडियन आर्मी को जांबाज अफसर मिलते हैं। एनडीए में सिर्फ पुरूषों को लिया जाता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नारी भी सेना में अफसर बन अपनी शक्ति का पराक्रम दिखा सकती है। एनडीए पास आउट देश की पहले महिला बैच की टॉपर शनन ढाका के बारे में हम आपको रूबरू करा रहे हैं। शनन ढाका के पिता सेना में अफसर थे। उनके तीन बेटियां थीं। उनका सपना था कि बेटी अफसर बनकर देश का नाम रोशन करे। शनन ढाका, जब बहुत छोटी थीं, तब अपनी मां के साथ दगंल फिल्म देखने के लिए गई। फिल्म का एक डायलॉग शनन ढाका की मां सुनाया करतीं। जिसे पर शनन ने अपनी मां से कहा कि, अब आपकी ये छोरी इंडियन आर्मी ज्वाइन करेगी। एनडीए परीक्षा पास कर अफसर बन देश की सेवा करेगी।

कौन हैं शनन
शनन ढाका रोहतक जिले की रहने वाली हैं। साल 2022 में पहली महिला बैच के लिए हुई प्रवेश परीक्षा में शनन ढाका ने टॉप किया है। उनकी उम्र 19 साल है। शनन रोहतक के एक छोटे से गांव सुंडाना से ताल्लुक रखती हैं। शनन का चयन लेफ्टिनेंट पद पर हुआ है। उनकी इस उपलब्धि पर न केवल उनके परिवार और जिले को बल्कि पूरे देश को गर्व है। शनन ने अपनी इस कामयाबी के पीछे के रहस्य को एक न्यूज चैनल के साथ बातचीत के दौरान शेयर किए। उन्होंने कई किस्से सुनाए और कहा कि, आज के दौर में नारी किसी से कम नहीं।

पिता सुबेदार पद से हुए हैं रिटायर
फौज में ऑनरी नायब सुबेदार विजय कुमार ढाका 2020 में रिटायर हुए हैं। उनका सपना था कि उनके बच्चे भी फौज में जाएं। परिवार में तीन बेटयिं जोनन, शनन और आशनि भी शुरू से आर्मी पब्लकि स्कूल में पढ़ती थीं। शनन बचपन से ही पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। शनन ने अपनी शुरुआती 12वीं तक की शक्षि आर्मी पबिल्क स्कूल रुड़की, जयपुर और 12वीं आर्मी पब्लिक स्कूल चंडी मंदिर से की। 12वीं की पढ़ाई करने के बाद शनन डीयू के लेडी श्रीराम कॉलेज में फर्स्ट इयर बीए प्रोग्राम की पढ़ाई कर रही हैं।

मम्मी के साथ देखी दगंल फिल्म
शनन ने बताया कि, मम्मी के साथ हम तीनों बहनें दगंग फिल्म देखने के लिए थियेटर गए थे। वहां से आकर मम्मी दगंल फिल्म का एक डायलॉग हमेशा दोहराया करती थीं, वो कहतीं, ’ये बात मेरे समझ में न आई कि गोल्ड तो गोल्ड होता है, छोरा लावे या छोरी’। मां इसे कहते हुए मुस्कुरातीं और हम जोश से भर जाते थे। मैंने ठान लिया था कि मुझे कुछ ऐसा करके दिखाना है कि मेरी मां मुझ पर और तीन बेटियों की मां होने पर हमेशा गर्व कर सके।

चयन की घोषणा हुई तो मुझे बेहद खुशी हुई
शनन बताती हैं कि, जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आर्मी में एनडीए से पहले बैच के चयन की घोषणा हुई तो मुझे बेहद खुशी हुई थी। उसके बाद मैंने सिलेबस डाउनलोड करके देखा कि कैसे सवाल पूछे जाते हैं। मैंने पिछले साल के पेपर सॉल्व करने शुरू किए। उसमें मुझे पता चला कि अलग अलग वैराइटी के सवाल थे। इसके लिए मैंने अलग अलग किताबों से तैयारी की। शनन बताती हैं कि, मैंने एनडीए परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए कभी कोचिंग का सहारा नहीं लिया। दिन में तीन से चार घंटे तक रेगुलर सेल्फ स्टडी से इसकी तैयारी की। शनन के 12वीं में 98 पर्सेंट और 10वी में 97.4 पर्सेंट नंबर आए थे।

बेटा-बेटी में अब नहीं रहा फर्क
शनन बताती हैं कि, खुद को फिजिकल फिट रखने के लिए रोज सुबह वाकिंग, जॉगिंग और स्किपिंग आदि का सहारा लिया। वो कहती हैं कि मैं नियमित तौर पर वॉक जरूर करती हूं। साथ ही अपना खानपान भी सीमति रखा है। जिससे मुझे अधकि पोषण मिले और मैं खुद को शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट रख सकूं। शनन कहती हैं कि, आज के युग में बेटे व बेटियों में कोई फर्क नहीं हैं। जो काम लड़के कर सकते हैं, उसके लड़कियां भी करने में सक्षम हैं। इंडियन आर्मी में अफसर बनकर देश सेवा करने का जो मुझे मौका मिला, उससे मैं और मेरे माता-पिता बहुत खुश हैं।

नये बदलाव ने उन्हें नई राह दिखा दी
शनन ने एक किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि, जब उनके स्कूल में एनडीए एग्जाम के लिए मॉक टेस्ट कराए जा रहे थे। वो रूम में जाने लगीं तो मैम ने बताया कि ये सिर्फ लड़कों के लिए होते हैं। लेकिन सेना भर्ती में नये बदलाव ने उन्हें नई राह दिखा दी। बता दें कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की प्रवेश परीक्षा में शनन ने पहला और ओवरऑल एनडीए की परीक्षा में दसवीं रैंक हासिल करके खुद को साबित कर दिया। शनन कहती हैं कि मैं हमेशा से ही एकआर्मी अफसर बनना चाहती थी। सेना पर लोगों का भरोसा होता है। यही नहीं सेना में लोगों के व्यक्तत्वि का बहुआयामी विकास होते हैं। सेना की ट्रेनिंग व्यक्ति को शारीरिक और भावनात्मक दोनों रूप में मजबूत बनाती है।

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