देश में 6 साल पहले 500 और 1000 के नोटों को बंद कर दिया गया था। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। पांच में चार जजों ने एक मत से फैसला सुनाते हुए नोट बंदी के फैसले को बरकरार रखा है। वहीं एक जज की राय फैसले से अलग थी। सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के खिलाफ 58 याचिका दाखिल की गईं थीं, जिसमें नोटबंदी की खामियां गिनाई गईं थीं। जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने बीते 7दिसंबर को सुनवाई पूरी कर ली थी। सोमवार को जस्टिस बीआर गवाई ने बहुमत का फैसला पढ़ा।
नोटबंदी के फैसले पर जस्टिस एम अब्दुल नजीर, जस्टिस ए एस बोपन्ना, वी सुब्रमण्यम ने सहमति जताई है। वहीं जस्टिस बी वी नागरत्ना ने अलग फैसला पढ़ा। उन्होने माना कि आरबीआई एक्ट की धारा 26 (02) का पालन किए बिना नोटबंदी की गई।
पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि 8 नवंबर, 2016 के नोटिफिकेशन में कोई त्रुटि नहीं मिली है और सभी सीरीज के नोट वापस लिए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी का फैसला लेते समय अपनाई गई प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस अधिसूचना को रद्द करने की कोई जरूरत नहीं है। कोर्ट ने ये भी कहा कि RBI को स्वतंत्र शक्ति नहीं कि वह बंद किए गए नोट को वापस लेने की तारीख बदल दे। वहीं कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार RBI की सिफारिश पर ही इस तरह का निर्णय ले सकती है।
फैसले में ये भी कहा गया कि कोर्ट आर्थिक नीति पर बहुत सीमित दखल दे सकता है। जजों ने कहा कि केंद्र और आरबीआई के बीच (नोटबंदी पर) 6 महीने तक चर्चा की गई थी, इसलिए निर्णय प्रक्रिया को गलत नहीं का जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जहां तक लोगों को हुई दिक्कत का सवाल है, यहां यह देखने की जरूरत है कि उठाए गए कदम का उद्देश्य क्या था।