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धर्मांतरण को लेकर थामी बंदूक और बना डाकू, मुंह के अंदर सुल्ताना रखता था चाकू

लखनऊ। आजाद भारत में कई नामी और खुंखार डकैत हुए और जंगल में बैठकर अपनी सल्तन चलाई, लेकिन आजादी से पहले भी कई बागी जन्मे। जिनके नाम से अंग्रेज सरकार थर-थर कांपती है। इन्हीं में से एक सुल्ताना डाकू था। जिसने धर्मान्तरण को लेकर विद्रोह कर दिया। 17 साल की उम्र में बंदूक थाम ली और जंगल में उतर गया। महज कुछ दिनों के अंदर सुल्ताना ने अपना गैंग खड़ा कर लिया और ब्रिटिश फौज को सीधे चुनौती देने लगा।

मुरादाबाद के हरथला गांव में लिया था जन्म
सुल्ताना का जन्म  यूपी के मुरादाबाद जिले के हरथला गांव में 1901 में हुआ था। तब देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में ही अंग्रेजों ने देश में धर्मांतरण का सिलसिला तेज कर दिया था। अंग्रेजी सैनिक हमारे लोगों को पकड़ कर उन्हें ईसाई बना रहे थे। सुल्ताना भांतु जाति में पैदा हुआ था। भांतु मतलब, वो जाति जिनका कोई ठिकाना नहीं होता, भोजन की तलाश में यहां-वहां भटकने वाली जाति। सुल्तान के नाना ने उसे अंग्रेजों के कैम्प में भेज दिया।

जबरन ईसाई बनाया तो सुल्ताना आगबबूला हो गया
सुल्ताना को जब अंग्रेजों के कैंप में भेजा गया था, तब उसकी उम्र 17 वर्ष की थी। सुल्ताना की आंख के सामने अंग्रेज आम लोगों पर जुल्म ढाने के साथ ही उन्हें पीट-पीट कर धर्म बदलने का दबाव बनाते थे। एक किशोरी को अंग्रेजों ने जबरन ईसाई बनाया तो सुल्ताना आगबबूला हो गया। उसने अपने माता-पिता की मर्जी के खिलाफ कैम्प छोड़ कर भाग गया। सुल्ताना कुछ दिन तक नजीदाबाद में रहा और एकदिन रात को घर छोड़कर भाग गया और जंगल को अपना ठिकाना बना लिया। कुछ दिन वहीं बिताए फिर धीरे-धीरे उसने अपनी एक गैंग तैयार कर ली। गैंग तैयार होने के बाद उसने अंग्रेजों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया।

अंग्रेजों के अलावा जमींदारों को लूटा
उस वक्त उत्तराखंड यूपी का हिस्सा हुआ करता था और अंग्रेज गवर्नर देहरादून में बैठता था। देहरादून पहुंचने का सिफ एक ही रास्ता था नजीबाबाद के जंगल। अंग्रेजी सेना का कारवां अक्सर उस जंगल से होकर ही गुजरता था। जब भी अंग्रेजी सेना खजाने से भरी गाड़ियां लेकर वहां से निकलती सुलतान उन्हें लूट लेता। सुल्ताना जहां अंग्रेजों के खजाने को लूटता तो वहीं जमींदारों और व्यापारियों को भी नही बख्शा। चुन-चुन कर इनकी कोठियों में डकैती डाली। इसी के चलते जमींदार और अंग्रेज उसे सुल्ताना डाकू कहकर बुलाने लगे थे। सुल्ताना के गैंग में करीब 100 से ज्यादा डकैत थे।

मुंह ये निकाल लेता था चाकू और कर देता वार
जानकार बताते हैं, “सुल्ताना के अंदर मुंह में चाकू छिपा लेने की कला थी। वो अपने मुंह में चाकू रखे रहता था और सबसे सहज बातचीत करता रहता था। वक्त आने पर वो मुंह से चाकू निकालकर किसी का भी गला रेत सकता था। जानकार बताते हैं कि सुल्ताना ने मुंह में छिपी चाकू के जरिए एक अंग्रेज दरोगा की गर्दन को काट दिया था। जानकार बताते हैं कि, सुल्ताना अंग्रेजों, जमींदारों और व्यापारियों से लुटे हुए माल का एक बड़ा हिस्सा गरीबों में बांट देता था। सुल्ताना को लोग अपना मशीहा मानने लगे थे। इसी के चलते अंग्रेज फौज सुल्ताना को पकड़ नहीं पा रही थी। लोग सुल्ताना की ढाल बन चुके थे।

डकैती का दिन और समय कर देता था मुकर्रर
सुल्ताना जिसके भी घर में लूट करने वाला होता था उसको पहले ही चिट्ठी भिजवा दिया करता था। उस चिट्ठी में लूट की तारीख और समय लिखा हुआ होता था। सुल्ताना तय तारीख और समय पर उसको लूटता ही लूटता था। बताया जाता है कि सुल्ताना एक जमींदार उमराव सिंह को लूट करने की जानकारी देते हुए चिट्ठी भेजी। जमींदार ने अपने एक नौकर को वो चिट्ठी देकर पुलिस के पास शिकायत करने भेजा। जमींदार का नौकर जंगल के रास्ते पुलिस के पास जा रहा था तभी उसको सुल्ताना की गैंग के कुछ लोग मिले। गैंग के लोग पुलिस की ड्रेस में ही थे। उस आदमी ने उन्हें पुलिस जान कर वो चिट्ठी उन्हें ही दे दी। अगले दिन सुल्ताना ने जमींदार के झार पर डाका डाला।

घोड़े पर चलता था सुल्ताना
सुल्ताना डाकू भी अपनी गैंग के साथ घोड़े पर ही चलता था। उसने महाराणा प्रताप की ही तरह अपने घोड़े का नाम भी चेतक रख रखा था। सुल्ताना का चेतक भी बहुत तेज भागता था। छोटे कद और सांवले रंग का सुल्ताना खुद को महाराणा प्रताप का वंशज बताता था। ठाकुरों की इज्जत भी किया करता था। उसकी गैंग के पास भी नई तकनीक के हथियारों की कोई कमी नहीं थी क्योंकि उसने ये हथियार अंग्रेजी सैनिकों से ही लूटे थे। सुल्ताना ने पुतली बाई से शादी की थी और उसका एक बच्चा भी था। सुल्ताना की मौत के बाद उसकी बीवी पुतली बाई बीहड़ की पहली और सबसे खूबसूरत महिला डाकू भी रही।

स्पेशल फोर्स के साथ मुखबिर लगाए
सुल्ताना का आतंक हद से ज्यादा बढ़ने के बाद, अंग्रेजी हुकूमत ने जंगल का ज्ञान रखने वाले तेज तर्रार जिम कार्बेट को बुलाया। जिम कार्बेट ने भी तमाम प्रयास किए लेकिन सुल्ताना था कि हाथ ही नहीं आ रहा था। जब जिम कार्बेट भी सुल्ताना को पकड़ पाने में असफल रहे तो अंग्रेजी हुकूमत ने अपने सबसे जांबाज अफसर फ्रेडी यंग को बुलाया। 300 जवानों की एक स्पेशल टीम तैयार की गई। टीम को नई तकनीक के हथियार सौंपे गए। 300 की इस टीम में 50 खास घुड़सवारों को भी रखा गया। फ्रेडी यंग ने सुल्ताना को पकड़ने के लिए जंगल में मुखबिरों को तैनात कर दिया।

1924 को दी गई फांसी की सजा
सुल्ताना के करीबी मुनीम अब्दुल ने जमींदार खड़कसिंह को जानकरी दी कि सुल्ताना नजीबाबाद के कजली बन में रुका हुआ है। लोकेशन मिलते ही फ्रेडी यंग ने जिम कार्बेट और 300 जवानों के साथ सुल्ताना को घेर लिया। सुल्ताना तैयार नहीं था। 14 दिसंबर, 1923 को फ्रेडी यंग की टीम ने सुल्ताना को उसके 14 साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया। सुल्ताना को गिरफ्तार करने के बाद उसे नैनीताल जेल में ले जाया गया। कुछ दिनों बाद उसे आगरा जेल शिफ्ट कर दिया गया। करीब 7 महीने तक मुकदमा चला फिर उसको फांसी की सजा सुना दी गई। 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना और उसके 14 साथियों को फांसी पर लटका दिया गया। उसको पनाह देने वाले 40 लोगों को कालापानी की सजा दी गई।

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