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दिल्ली एम्स में रिसर्च स्टाफ की नियु्क्ति की अवधी को किया गया सीमित, 6 साल का ही होगा रिसर्चर का कार्यकाल

एम्स में शोधार्थियों के लिए बने इस नए नियम के खिलाफ एम्स की सोसइटी ऑफ यंग साइंटिस्ट के सदस्य धरने पर बैठ गए हैं. उनकी मांग है कि इस फैसले को वापिस लिया जाए..

दिल्ली एम्स में रिसर्च स्टाफ की नियु्क्ति की अवधी को अब सीमित कर दिया गया है. अब संस्थान में टेंपरेरी बेसिस पर रिसर्च करने वाले शोधार्थियों के काम करन की की अवधी को घटाकर 6 साल कर दिया गया है. अब इससे अधिक समय तक रिसर्च करने की परमिशन नहीं मिलेगी. इस बाबत बने नए नियमों पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मुहर लगा दी है.

मंत्रालाय की ओर से एक पत्र भी जारी कर दिया गया है. ऐसे में अब एम्स में कई सालों से रिसर्च कर रहे हजारों शोधार्थियों का भी भविष्य संकट में आ गया है.

एम्स में शोधार्थियों के लिए बने इस नए नियम के खिलाफ एम्स की सोसइटी ऑफ यंग साइंटिस्ट के सदस्य धरने पर बैठ गए हैं. शोधार्थियों का कहना है कि एम्स में अलग अलग विषयों पर रिसर्च कर रहे स्टाफ के लिए नियुक्ति की समय सीमा घटाकर केवल 6 साल कर दिया गया है.

जबकि कई शोधार्थी पिछले 10 से 15 सालों से भी रिसर्च कर रहे हैं. पहले अगर किसी विभाग में उनकी रिसर्च पूरी हो जाती थी तो दूसरे में ट्रांसफर कर दिया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा. केवल छह साल की अवधी तक ही रिसर्च कर सकते हैं.

15 साल से काम करने वाले रिसर्चर को स्थाई किया जा सकता है

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहा था कि अगर कोई रिसर्च स्कॉलर एम्स में 15 साल काम कर चुका है तो उसे स्थाई किया जा सकता है, लेकिन अब नया नियम लागू होने के बाद अब जो भी नई नियुक्ति होगी वो रिसर्चर केवल छह साल तक ही काम कर सकेंगे. ऐसे में संस्थान में स्थाई नौकरी मिलने की संभावना खत्म हो गई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, एम्स ने 22 जून को एक आदेश जारी किया था. जिसमें कहा गया था कि संस्थान में कार्य कर रहे शोधार्थियों के कार्यकाल को लेकर नए दिशा-निर्देश बनाने पर काम किया जा रहा है. इसकी समीक्षा भी की जा रही है. अब स्वास्थ्य मंत्राालय ने नए नियमों को हरी झंडी दे दी है.

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