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कलुआ बंदर के बाद तीन तेंदुओं पर चला ‘कानून’ का डंडा, कानपुर में काट रहे खूंखार आदमखोर ‘उम्रकैद’ की सजा

कानपुर। शराब के नशे में धुत होकर लोगों पर हमला करने वाले कलुआ बंदर को वन विभाग की टीम ने पकड़ा था। उसे गिरफ्तार कर कानपुर के चिड़ियाघर में लाया गया। खुंखार बंदर को पिंजड़े में बंद कर दिया गया और पिछले चार वर्षों से वह बाहर नहीं आ सका। अब बंदर की पूरी जिंदकी इन्हीं सलाखों के पीछे कटेगी। कुछ ऐसा ही तीन तेंदुओं के साथ हुआ है। 25 से ज्यादा बेगुनाहों पर हमला करने वाले आमदखोरों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। इन्हें विशेष प्रकार के पिंजरे में रखा गया है। वहां पर एक बोर्ड लगा हुआ है, जिसमें लिखा है कि, यहां दर्शकों का आना वर्जित है।

शराब की लती है कुलआ बंदर
आपने इंसानों को सजा सुनाए जाने को लेकर सुना होगा, लेकिन कानपुर स्थित चिड़ियाघर में बेजुबानों के गुनाह की सजा दी जाती है। करीब साढ़े चार साल पहले कलुआ बंदर को वन विभाग की टीम ने पकड़ा था। कलुआ एक तांत्रिक के साथ रहता था। तांत्रिक ने उसे शराब की लती बना दिया था। तांत्रिक की मौत के बाद जब कलुआ बंदर को शराब नहीं मिली तो वह आमलोगों पर हमला करने लगा। करीब तीन दर्जन लोगों को जख्मी कर चुके बंदर को पकड़ कर कानपुर लाया गया। उसे पिंजड़े में बंद कर दिया गया। फिलहाल उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया। जिसके चलते अब बंदर को ताउम्र सलाखों के पीछे रहना होगा। वहीं तीन ‘आदमखोर’ तेंदुआ पर कानून का डंडा चला और वह भी ‘उम्रकैद’ की सजा यहीं पर काट रहे हैं।

पांच बाई पांच की कोठरी में काट रहे ‘उम्रकैद’ की सजा
मेरठ, प्रतापगढ़ और मुरादाबाद में दहशत का पर्याय बने तीन खतरनाक तेंदुआ को वन विभाग की टीम ने कड़ी मशक्कत के बाद पकड़ा था। इन्हें बकायदा हिरासत में लेकर कानपुर चिड़ियाघर लाया गया था। यहां पर लोहे की सलाखों के पीछे पहुंचाया गया। अब ये पांच बाई पांच की कोठरी में ‘उम्रकैद’ की सजा भुगत रहे हैं। लंबे समय तक कैद में रहने के बावजूद तेंदुओं का स्वभाव जरा सा भी नहीं बदला। जब से तीनों आए हैं, तब से कीपर राम बरन उनकी देखभाल करते हैं। चिड़ियाघर के डॉक्टर नासिर खान कहते हैं कि, जो भी जानवर खुंखार होते हैं। उन्हें अलग पिंजड़ों में रखा जाता है। उनके इलाज के साथ स्वभाव पर नजर रखी जाती है। यदि वह इंसानों पर हमला नहीं करते तो उन्हें पिंजड़ों से बाहर कर दिया जाता है। फिलहाल बंदर कलुआ समेत तेंदुओं के स्वभाव पहले की तरह बरकरार है।

डॉक्टर आरके सिंह ने मुराद को दबोचा
मुरादाबाद के अगवानपुर के जंगल में तेंदुए की बादशाहत कायम थी। साल 2018 में तेंदुए ने इलाके में करीब सात लोगों पर हमला कर घायल कर दिया था। चिड़ियाघर कानपुर में तैनात वरिष्ठ डॉक्टर आरके सिंह को इस तेंदुए को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गई। डॉक्टर सिंह के बिछाए जाल में आदमखोर तेंदुआ फंस गया। तेंदुए को कड़ी मशक्कत के बाद बाड़े के अंदर रखा गया। इस दौरान उसने बाड़े के अंदर हमला किया और बुरी से जख्मी हो गया था। डॉक्टर आर के सिंह के नेतृत्व में 21 जनवरी 2018 को कानपुर जू लाया गया। मुरादाबाद में पकड़े जाने के कारण इसका नाम मुराद रखा गया। फिलहाल ये तेंदुए पिछले एक वर्ष से सलाखों के पीछे है।

सम्राट को पकड़ने के लिए बुलानी पड़ी थी सेना
अप्रैल 2016 में तीन साल की उम्र में मेरठ में 13 लोगों पर हमले के गुनहगार तेंदुए को पकड़ने के लिए पुलिस के साथ सेना के 200 से ज्यादा जवान लगाने पड़े थे। रेस्क्यू विशेषज्ञ के रूप में कानपुर जू से तत्कालीन पशुचिकित्सक डॉक्टर आरके सिंह पहुंचे थे। ट्री गार्ड का कवचनुमा खोल पहन कबाड़ हटाने पर कुर्सी के पीछे तेंदुए का मात्र एक रोजेट (खाल पर बने काले धब्बे) ही दिखा। ट्रेंकुलाइजर का निशाना सटीक लगा लेकिन वह आंखों से ओझल हो गया। संभल पाते इससे पहले पंजे के वार से बाएं हाथ का अंगूठा कट गया, इसमें आठ टांके लगवाने पड़े। हालांकि दवा ने असर दिखाया और तेंदुआ बेहोश हो गया। 15 अप्रैल 2016 को कानपुर जू आने पर नाम सम्राट रखा गया। उसे पकड़ने में 51 घंटे लगे थे।

डॉक्टर नासिर ने प्रताप को किया गिरफ्तार
जनवरी 2018 में कहीं से भटककर प्रतापगढ़ के बाघराय बाजार में पहुंचे खूंखार तेंदुए ने 13 लोगों की जान लेने की कोशिश की थी। रेस्क्यू के लिए कानपुर से बुलाए गए डॉ.नासिर ने बताया कि लंबी छलांग लगाने में माहिर तेंदुआ लोगों को घायल करने के बाद रात आठ बजे बाघराय बाजार के भूसे भरे कमरे में घुस गया था। देर रात एक बजे रेस्क्यू टीम ने उसे काबू करने को लकड़ी के दरवाजे में दो छेद करवा ट्रैंकुलाइजर गन से निशाना साधा। डार्ट लगने से वह हमलावर हो गया। बेहोश होने तक दरवाजे पर पंजे मारता रहा। दहशत के कारण बेहोशी के बावजूद उसे जाल में बांधकर पिंजरे में डाला गया। 14 नवंबर 2017 को कानपुर जू लाया। प्रतापगढ़ से आने के कारण प्रताप नाम पड़ गया।

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