इटावा। आवारा पशुओं से मुक्ति दिलाने का स्वप्न दिखाकर दोबारा सत्ता में आई बीजेपी के राज में किसान त्राहि-त्राहि कर रहा है। आवरा मवेशियों से फसल को बचाने के लिए हाड़ कपा देने वाली सर्दीभरी रात में किसान खेतों में रतजगा करने को मजबूर हैं। यमुना पट्टी की जो तस्वीर सामने आई है, वह 100 वर्ष पहले हल्कू की याद दिलाती है। किस तरह से हल्कू ने पूस की रात में खेत को जानवरों से बचाने के लिए पूरी रात जागता। कुछ इसी तरह से आज का हल्कू अन्न की रखवाली के लिए जिंदगी को दांव पर लगा रहा है और सरकार व प्रशासन जानकर अनजान बना हुआ है।
जिंदा है यूपी में ‘हल्कू’
100 वर्ष पहले मुंशी प्रेमचंद ने एक उपन्यास लिखा था। पूस की एक रात, जिसमें एक किरदार था हल्कू। हल्कू, पूस की एक रात एक मोटी चादर के सहारे खेत की रखवाली कर रहा है, आग जलाकर तापता है आग से मन व शरीर को सुकून देने वाली गर्माहट इतनी अच्छी लगती है कि वहीं सो जाता है। लेकिन आज हम यमुना पट्टी के उन हलकों की दर्द की वह तस्वीर दिखाएंगे जो आपको बेचैन कर देगी। बीहड़ी क्षेत्र के यमुना नदी की तलहटी व ऊपरी गांव में ग्राम नगला तौर निवासी अतुल गौतब (20) अन्ना मवेशियों से फसल को बचाने के लिए सर्दभरी रात में टॉर्च के जरिए रतजगा कर रहा है।
पेट पालने के लिए कर खेती-बाड़ी
अतुल गौतम ने बताया कि, उसके पिता की मौत हो चुकी है। पिता की मौत के बाद मां, भाई और छोटी बहनों की दो वक्त की रोटी की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर है। अतुल ने बताया कि, वह खेती-किसानी के साथ पढ़ाई भी करता है। अपनी जिम्मेदारी निभानें के लिए अतुल 100 साल पुराने उस हल्कू वाले किरदार को निभा तो रहा है। लेकिन सर्द रातों में आग जलाकर सोने के बजाय रातों में जाग कर इस कोने से लेकर उस खेत में दौड़ कर जंगली जानवरों व आवारा पशुओं को खदेड़कर पौ फटने के इंतजार में आसमान को ताक़-ताककर खेतो की रखवाली को मजबूर है।
फसलों को बर्बाद कर रहे अन्ना मवेशी
ये कहानी केवल एक अतुल की नहीं है। आसपास के इलाके के सभी किसानों की तस्वीर एक ही है। गांव घुरा जाखन के रहने वाले महाराज सिंह ने बताया कि वह तो यमुना नदी के किनारे पर खेतो में फसल की रखवाली करते हैं कभी-कभी तो जंगली जानवरों से आमना-सामना हो जाता है, पर मजबूरी है। रात को घर के बजाए खेत में ढेरा जमाना पड़ रहा है। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो खड़ी फसल को आवरा मवेशी चट कर जाएंगे। अतुल कहते हैं कि, सरकार के सारे दावे झूठें हैं। आवारा मवेशी, किसानों का जीना मुहाल किए हुए हैं। रात को खड़ी फसलों बर्बाद कर रहे हैं।
कुत्ता नहीं बल्कि एक टीन का डब्बा
किसान महाराज सिंह कहते हैं, सौ वर्षों वाले हल्कू के पास झबरा कुत्ता था लेकिन आज के हल्कू के पास भौंकने को कुत्ता नहीं बल्कि एक टीन का डब्बा है। जिसे पीट-पीटकर पशुओं को भगाने का प्रयास किया जाता है। महाराज सिंह बताते हैं कि, आवारा मवेशी का प्रकोप हमारे जनपद में ही नहीं बल्कि सूबे भर में हैं। महाराज सिंह बताते हैं कि, फतेहपुर जनपद में आवारा मवेशियों की दहशत के कारण किसानों ने इस वर्ष गेहूं, चना, सरसों की फसल की बोवनी नहीं की। इन फसलों की जगह सिर्फ गन्ना खेतों में उगाया है। क्योंकि अन्ना मवेशी अन्य फसलों को चट कर जाते हैं।
मुंशी प्रेमचंद्र ने लिखी थी हल्कू की कहानी
बता दें, हल्कू की इस कहानी को लिखे मुंशी जी को तकरीबन सौ बरस हो गए। इन सौ वर्षों में हजारों पूस की रातें आईं। देश में विज्ञान व इंटरनेट आदि से बहुत तरक्की हुई। कहने का मतलब यह कि तरक्की की राह में शेष दुनिया के साथ हम चलते ही नहीं हैं बल्कि आगे निकल जा रहें हैं पर इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि हल्कू आज भी है। अब भले सेठ साहुकारों से नहीं सताया जाता है लेकिन कर्ज तो लेता है, बैरन मौसम से हर वर्ष जूझता है। कभी सूखे की मार सहता है तो कभी बाढ़ की, कभी ओला वृष्टि की।
नहीं जागी सरकार
आज का हल्कू बैंक और मौसम की मार झेलता हुआ उन्हीं अन्ना गोवंश,नीलगायों, जंगली सुअरो,से अपनी फसल की रखवाली कर रहा है। जिनसे मुंशी जी का हल्कू अपनी फसल नहीं बचा सका था। इन तस्वीरों को देखकर आपको तो शर्म आ जाएगी लेकिन शायद इन सियासत दानों की आंखो का पानी मर चुका है क्योंकि ना तो इन्हें हल्कू जैसे हजारों लाखों किसानों की ना तो दुख दर्द और समस्या नजर आती हैं ना ही अपने सिस्टम की नाकामी।