कानपुर। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष पर कानपुर के मस्वानपुर स्थित एक गेस्टहाउस में महान क्रांतिकारी नीलांबर-पीतांबर का खरवार परिवार ने बड़े धूम-धाम के साथ शहादत दिवस मनाया। अंग्रेजों के खिलाफ जंग-ए-आजादी का विगुल फूंकने वाले रणबांकुरों को नमन करने के लिए खरवार सभा के अध्यक्ष विजय खरवार, उपध्यक्ष शेषनाथ खरवार, महामंत्री ह्दयशंकर खरवार, प्रसार मंत्री राजेश कुमार महतो समेत सैकड़ों लोग कार्यक्रम में उपस्थित रहे। इस मौके पर विजय खरवार ने कहा कि नीलांबर-पीतांबर के पिता स्वर्गीय चेतू सिंह भोक्ता ने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया। उन्होंने अपने पुत्र नीलांबर और पीतांबर को देश के लिए समर्पित किया। जिन्हें बाद में स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त फांसी दे दी गई। दोनों क्रांतिकारियों की शहादत को हम कभी भूला नहीं सकते।
बच्चों ने मनमोहक नृत्त कर जीता सबका दिल
क्रांतिकारी शहीद नीलांबर-पीतांबर के शहादत दिवस के अवसर पर रविवार को मस्वानपुर स्थित एक गेस्टहाउस में प्रादेशिक खरवार सभा उत्तर प्रदेश की ओर से प्रखंड स्तरीय सम्मेलन आयोजित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम की शुरुआत शहीद वेदी पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गई। इसके बाद बच्चों ने मनमोकि नृत्य और गीत गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। संस्था की कोरियाग्राफर रूचि खरवार ने भी अपने नृत्य से सभी का दिल जीत लिया। शहादत दिवस पर आए लोगों ने क्रांतिकारी पीतांबर-नीलांबर के पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लिया।
ये पदाधिकारी रहे शामिल
खरवार समाज के वार्षिक उत्सव में मुख्य अतिथि के तौर पर एससी प्रसाद, डी प्रसाद खरवार के अलावा काशीनाथ खरवार, पूरन नाथ खरवार, राघवेंद्र खरवार, रमेश खरवार, राजेश कुमार खरवार के साथ ही खरवार महासभा के पदाधिकारियों के अलावा, युवा, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे उपस्थित थे । लोगों को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने शहीद नीलांबर पीतांबर की जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डाला। विजय खरवार ने कहा कि चेमो सन्या निवासी दोनो सहोदर भाई 1857 की क्रांति में कंद मूल खा कर व तीर धनुष के माध्यम से अंग्रेजों को लोहे का चना चबाने के लिए विवश कर दिया था। वर्तमान परिपेक्ष्य में उनकी शहादत को याद रखने की जरूरत है।
सरकार पर खड़े किए सवाल
विजय खरवार ने कहा कि सरकार अब तक भूमि अधिग्रहण कानून पास करने में असफल रही है । झारखंड, छत्तीसगढ़, के आदिवासियों ने 100 वर्षो से अधिक समय तक अलग राज्य के लिए आंदोलन किया लेकिन वे अपने ही राज्य में बेगाना बने हुए हैं। यहां पेशा कानून को निष्प्रभावी बनाया गया है। यहां स्थानीयता नीति ऐसी बनाई गई है कि बाहरी लोगों को यहां आसानी से नौकरी मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में आदिवासियों की अस्मिता खतरे में है। विजय खेरवान ने आगे कहा कि, उत्तर प्रदेश में भी समाज के उत्थान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। नीलांबर-पीतांबर को इतिहास में वह जगह नहीं मिली, जैसा अन्य क्रांतिकारियों को मिला। समाज अब आगे आकर अपने महान योद्धाओं की गाथा को गांव-गांव, शहर-शहर और घर-घर पहुंचाएगा।
कौन हैं नीलांबर-पीतांबर
नीलांबर सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म झारखंड राज्य के गढवा जिला के चेमो-सनया गांव में खरवार कि उपजाति भोक्ता जाति में हुआ था। उन्होंने 1857 में देश की आज़दी के लिए पहली क्रांति के दौरान अपने भाई पीतांबर के साथ मिलकर भोक्ता, खरवार और चेरो जाति के जागिरदारों को मिलाकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। 1857 की क्रांति में इन दोनों भाइयों के योगदान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पलामू में यह मशाल 1859 तक जलती रही। कर्नल डाल्टन ने दोनों भाइयों को अपने जाल में फंसाया और 28 मार्च 1859 को लेस्लीगंज में एक पेड़ पर दोनों भाइयों को फांसी दे दी गई। दोनों भाइयों का गांव चेमो आज भी उपेक्षित है और विकास की बाट जोह रहा है।