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जानिए 85 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले कानपुर देहात के इस गांव का ग्रामीणों ने क्यों ’मिनी-पाकिस्तान’ नाम रखा, 75 साल के बाद हुआ खुलासा तो हरकत में आया सरकारी महकमा

कानपुर देहात। देश छोड़कर पाकिस्तान में बस गए लोगों के नाम अकबरपुर तहसील के बारा गांव में जमीन दर्ज है। राजस्व अभिलेख में इन लोगों के नाम के आगे पाकिस्तान निवासी लिखा है। मामले की जानकारी होने पर तत्कालीन डीउम नेहा सिंह ने एसडीएम को जांच के आदेश दिए थे। राजस्व कर्मियों की जांच में कुल 18 नंबरों में टुकड़ों में करीब साढ़े चार बीघा जमीन 12 पाकिस्तानियों के नाम दर्ज मिली है। स्थलीय निरीक्षण में करीब ढाई बीघा जमीन का कब्रिस्तान के तौर पर प्रयोग मिला। अब ग्रामीण बारा गांव को ‘मिनी पाकिस्तान’ के नाम से पुकारते हैं।

डीएम की जांच के बाद हुआ खुलासा
अकबरपुर कोतवाली के बारा गांव में शत्रु संपत्ति होने की जानकारी पर डीएम ने एसडीएम सदर को जांच के निर्देश दिए थे। तहसील के राजस्व कर्मियों की जांच में बारा गांव में दो महिलाओं समेत 12 पाकिस्तानियों के नाम करीब साढ़े चार बीघा जमीन दर्ज मिली है। राजस्व निरीक्षक व लेखपाल ने मौके पर पड़ताल की तो इसमें करीब ढाई बीघा जमीन कब्रिस्तान के तौर पर प्रयोग होने की बात सामने आई। बारा के बुजुर्गों ने राजस्व कर्मियों को बताया कि अभिलेखों में दर्ज पाकिस्तान के लोग कभी गांव नहीं आए। जिला प्रशासन अब रिपोर्ट भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन भारत के शत्रु संपत्ति अभिरक्षक के कार्यालय को भेजेगा। उनके स्तर पर ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

खतौनी में इनके नाम हैं दर्ज
लेखपाल योगेंद्र सचान ने बताया कि पाकिस्तान के 12 लोगों के नाम दर्ज भूमि का मौके पर सत्यापन कर रिपोर्ट तैयार कर डीउम के पास भेज दी गई है। लेखपाल के मुताबिक, लतीफ अहमद खां, मोहम्मद अहमद खां, शराफत खां, जमील अहमद खां, असलम खां उर्फ मुन्नू, नियाज अहमद, अहमद खां, खालिक अहमद खां, पान बीबी, अशर्फुनिशा बेगम, असलम खां व जमील खां के नाम खतौनी में दर्ज हैं। फिलहाल, इस मामले की शासन स्तर पर जांच हो रही है।

85 फीसदी मुस्लिम आबादी
कानपुर-इटावा हाइवे से सटा हुआ बारा गांव की कुल जनसंख्या 11 हजार के करीब है। यहां 85 फीसदी आबादी मुस्लिम समाज की है। बारा के ग्राम प्रधान संतोष गौतम हैं। ग्राम प्रधान बताते हैं कि, उनके सामने इन लावारिस जमीनों का निपटारा करवाना ही सबसे बड़ी चुनौती रही है। संतोष बताते हैं, “गांव में लगभग 12 परिवारों की 5 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। इन खतौनियों में पाकिस्तानियों के नाम बरसों से दर्ज हैं। ये लोग आजादी से पहले यहीं रहते थे। देश के बंटवारे के बाद सभी पाकिस्तान जा बसे। फिर आज तक वापस नहीं लौटे। उनकी जमीनें खाली पड़ी हैं। कुछ जमीनों पर तो लोगों ने कब्जा भी कर लिया है, जिसकी शिकायत हमने तहसीलदार साहब से की है।

दोस्त मेरी जमीन तुम ले लेना
गांव के बुजुर्ग असलम (84) ने बताया कि, “बंटवारे के बाद पाकिस्तान जाने वालों में मेरे दोस्त नासित का परिवार भी था। हम दोनों तब पांचवी में पढ़ते थे। कहते हैं, जब नासिर पाकिस्तान जाने के लिए घर से निकला तो उसने मुझसे कहा कि, दोस्त अब हमारी जमीन तुम्हारी हुई। अब पता नहीं कभी मुलाकात हो पाएगी य नहीं। असलम ने बताया कि, कुछ साल हमनें दोस्त की जमीन पर फसल उगाईख् लेकिन बाद में छोड़ दिया। पिछले 70 से ये जमीनें खाली पड़ी हैं। बताते हैं, गांव के कुछ लोगों ने खाली पड़ी जमीनों पर स्कूल और दुकानों का निर्माण करवा लिया है। खेतों पर भी कब्जा हो चुका है।

संपत्तियों में दर्ज लोगों का पता नहीं बदला गया
बता दें, राजस्व विभाग उत्तर प्रदेश के मुताबिक, भूमि अभिलेख से जुड़े दस्तावेज हर 6 साल पर अपडेट किए जाते हैं। इसमें दस्तावेजों पर लिखे गए नाम के साथ-साथ पता वेरिफाई किया जाता है। यह प्रक्रिया अभिलेखों में होने वाली गलतियों को सही करने के लिए की जाती है। इन दस्तावेजों का बकायदा तहसील स्तर पर अपडेशन भी किया जाता है। लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी कानपुर देहात की इन शत्रु संपत्तियों में दर्ज लोगों का पता नहीं बदला गया।

क्या है ‘एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट 1968
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत सरकार ने ‘एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट 1968’ यानी शत्रु संपत्ति अधिनियम पारित हुआ। इसके अंतर्गत भारत छोड़कर विदेश चले गए मजदूर, जागीरदार और दूसरे लोगों की जमीनें, लाकर्स, बैंक खाते और कंपनियों में शेयर जैसी चल-अचल संपत्तियों को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया। इसके लिए बाकायदा सरकार ने हर राज्य में कस्टोडियन नियुक्त कर दिया। कस्टोडियन इन संपत्तियों की देखरेख करते हैं।

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