कानपुर। गणपति बप्पा मोरया… के गगनभेदी जयकारों के बीच गणेश महोत्सव की शुरूआत कानपुर में हो गई। मुम्बई की तर्ज पर शहर में महोत्सव मनाया जाता है और करीब पांच हजार से ज्यादा स्थानों में गणेश पंडालों की स्थापना की जाती है। यहां के दही-हांडी के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गणपति बप्पा के जयकारों की गूंज से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। यहां गणेशोत्सव के उत्साह की नींव वर्ष 1918 में बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी। अंग्रेजों के विरोध के चलते घंटाघर स्थित प्राचीन मंदिर मकान के रूप में निर्मित किया गया था। बताया जाता है कि, मस्जिद के चलते घर पर बप्पा विराजमान हुए थे।
घंटाघर में हैं बप्पा का मंदिर
शहर के घंटाघर इलाके में मौजूद गणेश मंदिर पूरे यूपी का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसका स्वरुप एक तीन खंड के मकान जैसा है। इसके साथ ही यहां भगवान गणेश के 10 रूप एक साथ मौजूद है। मंदिर के संरक्षक खेमचंद्र गुप्त बताते हैं कि उन दिनों पूरे कानपुर में यहीं से पहली बार गणेश उत्सव की शुरुआत हुई थी। बताते हैं, यहां भगवान गणेश का मंदिर बनने के दौरान अंग्रेजों ने रोक लग दिया था। क्योकि इस मंदिर के 50 मीटर की परिधि में एक मस्जिद मौजूद थी। जिस पर अंग्रेज अधिकारियों का तर्क था कि मस्जिद और मंदिर एक साथ नहीं बन सकते। ऐसे में यहां मंदिर बनवाने के बजाय 3 खंड का मकान बनवाकर भगवान गणेश को स्थापित किया गया था। तीन मंजिला इमारत में विघ्नहर्ता के साथ उनके बेटे शुभ-लाभ विराजमान हैं।
ऐसे हुई मंदिर के निर्माण की शुरूआत
मंदिर के संरक्षक खेमचंद्र गुप्त बताते हैं मेरे बाबा के कुछ महाराष्ट्र के व्यापारिक दोस्त थे जो ज्यादातर व्यापार के सिलसिले में गणेश उत्सव के समय कानपुर आया करते थे। बताते हैं, उनदिनों पूरे कानपुर में घंटाघर में अकेले गणेश उत्सव मनाया जाता था। बाबा के दोस्तों ने खाली प्लाट में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर वहा मंदिर बनवाने का सुझाव दिया था। बाबा ने मंदिर निर्माण करवाने के लिए 1908 में नीव रखी थी। 1921 में बाल गंगाधर तिलक इस मंदिर में गणेश प्रतिमा की स्थापना के लिए स्पेसल कानपुर आए थे। तिलक जी ने यहां भूमि पूजन तो कर दी मगर मूर्ति स्थापना नहीं कर पाए क्योकि पूजन के बाद किसी आवस्यक काम की वजह से उनको जाना पड़ा।
अंग्रजों ने मंदिर के निर्माण पर लगाई रोक
मंदिर के संस्थापक बताते हैं, जब अंग्रेज सैनिको को यहां मंदिर निर्माण और गणेश जी की मूर्ति के स्थापना की जानकारी मिली तो उन्होंने मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी थी। अंग्रेज अधिकारियों ने इसके पीछे तर्क दिया कि पास में मस्जिद होने के कारण यहां मंदिर नहीं बनवाया जा सकता है। क्योंकि कानून के मुताबिक़ किसी भी मस्जिद से 100 मीटर के दायरे में किसी भी मंदिर का निर्माण नहीं किया जा सकता। अंग्रेज अधिकारियों के मना करने के बाद रामचंद्र ने कानपुर में मौजूद अंग्रेज शासक से मुलाक़ात की मगर बात नहीं बनी।
बाल गंगाधर तिलक के चलते बन पाया मंदिर
संस्थापक बताते हैं कि, बाबा ने इसकी जानकारी बाल गंगाधर तिलक को दी। तब उन्होंने दिल्ली में अंग्रेज के बड़े अधिकारी से मिले और मंदिर स्थापना के साथ मूर्ति स्थापना की बात कही। इसपर दिल्ली से 4 अंग्रेज अधिकारी कानपुर आए और स्थिति का जायजा लिया था। अंग्रेज अधिकारी ने वहां गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की अनुमति तो दी मगर इस प्लॉट पर मंदिर निर्माण की जगह दो मंजिला घर बनावाने की बात कही। ऊपरी खंड पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करने को कहा। जिसके बाद यहां 2 मंजिला घर बनाया गया और पहले तल पर भगवान गणेश की प्रतिमा को रामचरण गुप्त ने स्थापित किया।
दशानन की तरह दस सिर लगी हुई मुर्ति
इस 3 मंजिल खंड में निचे वाले खंड पर ऑफिस और आने वाले श्रद्धालुओं के जूते चप्पल रखने का स्थान दिया गया। पहले तल पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है। जबकि दूसरे ताल पर भगवान गणेश के 9 अवतार रूपी मूर्ति के साथ एक 10 सिर वाले गणेश जी रखे गए। इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की संगमरमर के पत्थर के मूर्ति के अलावा उनके सामने पीतल के गणेश भगवान के साथ उनके बगल में ऋद्धि और सिद्धि को भी स्थापित किया गया है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां भगवान गणेश के दोनों बेटे शुभ – लाभ को भी स्थापित किया गया है। दूसरे खंड पर भगवान गणेश के नौ रूप वाली मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर में भगवान गणेश का एक मूर्ति ऐसी है जिसमें दशानन की तरह दस सिर लगे हुए हैं।