कानपुर। कोख में इंसान को रखती हैं जो, बचपन अपने दामन में महफूज करती हैं जो, वक्त पड़ने पर बन जाती है कभी झांसी की रानी, तो कभी बन जाती है रण में काली-भवानी… ऐसे ही कुछ वीरांगनाओं की हम आपको कहानी सुनाते हैं, जिनके जिक्र के बगैर आजादी का जश्न भी अधूरा है। इस साल आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इसी के तहत हम आपको एक ऐसी वीरांगना के रूबरू कराने जा रहे हैं। जिन्होंने अंग्रेज हुकूमत को ऐसा जख्म दिया, जो वह भारत छोड़ते वक्त भी नहीं भुला पाए।
बीबीघर में वारदात को दिया था अंजाम
मेरठ से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल मंगल पांडेय ने फूंका और इसकी आंच कानपुर तक फैल गई। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की जंग में कानपुर के नायक रहे पेशवा नानाराव द्वितीय कूद पड़े और चुन-चुन कर अंग्रेजों को मौत के घाट उतारने लगे। नानाराव की सेना में एक से बढ़कर एक योद्धा थे। इन्हीं में से महिला सैनिक बेगम हुसैनी खानम भी थीं। जिन्होंने कानपुर में दोबारा अंग्रेजों के कब्जे से प्रतिशोध के चलते बीबीघर में सैकड़ों अंग्रेजों का कत्ल करा दिया था और परिसर में ही स्थिति कुएं में सभी की लाशों को दफना दिया था।
फूलबाद स्थित बीवीघर पर रखे गए थे अंग्रेज
कानपुर में आज जहां फूलबाग है वहां पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पहले एक अंग्रेज अफसर ने भारतीय बीबी (प्रेयसी) के रहने के लिए एक मकान बनवाया था जिसे बाद में बीबीघर के नाम से जाना जाने लगा। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में कानपुर से अंग्रेजों को भगाने के लिए पेशवा नानाराव द्वितीय के सैनिक कई लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों को कानपुर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। 27 जून को जब अंग्रेज सत्तीचौरा घाट से इलाहाबाद के रास्ते कलकत्ता के लिए नावों के जरिये रवाना हो रहे थे उसी दौरान नानाराव के सैनिकों ने अंग्रेजों पर हमला कर दिया और चार सौ से अधिक अंग्रेज मारे गये। इसके बाद फतेहगढ़ से आ रही अंग्रेजों की बटालियन को विद्रोही सैनिकों ने गंगा नदी में नाव के जरिये पकड़ लिया और फूलबाग स्थित बीबीघर में रखा गया था।
इस वजह से हुसैनी ने करवाया कत्ल
अंग्रेजों की निगरानी के लिए नानाराव ने महिला सैनिक बेगम हुसैनी खानम को जिम्मेदारी सौंपी थी। इतिहासकारों के मुताबिक उस समय बीबीघर में तीन अंग्रेज अफसर, 73 महिलाएं व 124 बच्चे थे। अंग्रेजों ने अपने लोगों को क्रांतिकारियों के चंगुल से छुड़ाने के लिए जनरल हैवलाक को कानपुर भेजा। हैवलाक अपने सैनिकों के साथ क्रांतिकारियों पर हमला कर दिया। 17 जुलाई 1857 को अंग्रेजी फौजों ने कानपुर पर पूरी तरह कब्जा कर लिया। नाना साहब 16 जुलाई की रात में ही कानपुर से पलायन कर गए। इसी रात बेगम हुसैनी खानम ने कई जल्लाद बुलाए और बीबीघर में बंद अंग्रेजों का कत्ल करा दिया। सभी के शव अहाते के कुएं में डलवा दिए गए। इसके बाद अंग्रेजों ने बीबीघर को ढहा दिया और कुएं को पाट दिया। इतिहासकार बताते हैं कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय जब बीबीघर कांड हुआ तो पूरे विश्व भर में यह घटना चर्चित हो गई।
135 क्रांतिकारों को दी गई थी फांसी की सजा
बीबीघर कांड को लेकर इंग्लैंड में भारी आक्रोश था, वहां सड़कों पर होने वाले नाटक में नानाराव के पुतले को फांसी पर लटकाया जाता था। बढ़ते दबाब को देखते हुए अंग्रेजों ने कईबार नकली नानाराव को पकड़कर फांसी पर लटका दिया, लेकिन असली नानाराव कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने करीब 135 क्रांतिकारियों को नानाराव पार्क में मौजूद बरगद के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी। इतिहासकार के मुताबिक, बरगद पर लटकाए गए क्रांतिकारियों के सबूत इतिहास में कहीं भी मौजूद नहीं है। क्रांतिकारियों को पेड़ पर लटकाने का किस अंग्रेज अफसर ने दिया इसका भी कहीं जिक्र नहीं है। इनके मुताबिक, इतिहास के पन्नों में बीबीघर और सतीचौरा घाट पर हुए नरसंहार का जिक्र तो है, लेकिन बूढ़े बरगद पर क्रांतिकारियों को लटकाए जाने का साक्ष्य कही नहीं है।
अंग्रेजों ने बनवाया थ बीवी घर
इतिहासकार बताते हैं कि फूलबाग में बीबीघर नाम का एक छोटा सा भवन था। इसे एक अंग्रेज अफसर ने अपनी हिंदुस्तानी बीबी (प्रेयसी) के लिए बनवाया था, जिसे बाद में लोग बीबीघर कहने लगे। इसमें छह गज लंबा आंगन था। इसके दोनों ओर 20 फीट लंबे व 16 फीट चौड़े दो कमरे थे। इन कमरों के सामने बरामदे थे। कमरों के दोनों ओर स्नानघर बने थे। इसके परिसर में ही एक कुआं भी था। बीबीघर में 1857 की क्रांति के पहले तक वह अंग्रेज अफसर रहते थे जिनका परिवार यहां नहीं रहता था। यहां पर अंग्रेज अफसरों को खुश करने के लिए कुछ भारतीय दलाल भारतीय महिला और लड़कियों को उनके पास भेजते थे। अंग्रेजों के लिए बीबीघर अय्यासी का अड्डा था। इस बीबीघर को भारतीय स्टाइल में बनाया गया था।