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Sawan Special Story 2022 : कानपुर में है आदिकाल के चार शिवालयों में से एक शिवालय, ब्रह्माजी ने किया यज्ञ तो प्रकट हुए ब्रह्मेश्वर महादेव

कानपुर। सावन का पवित्र महिना चल रहा है। मंदिर से लेकर शिवालयों में भोले शंकर के जयकारे सुनाई पड़ रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा बिठूर स्थित ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर का है। मान्यता है कि यहां विधि विधान से शिव जी का पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यहां देश के कोने-कोने से भक्त आते हैं। सुबह पहर भक्त गंगा स्नान करने के बाद ब्रह्मेश्वर का जलाभिषेक कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

मंदिर का ये रहा इतिहास
करनपुर नगर से 20 किमी की दूरी पर स्थित बिठूर कस्बा है। जहां से 1856 की क्रांति का बिगुल फूंका गया था। कहा जाता है कि, यहीं पर मां सीता कई साल रूकी थीं और लव-कुश ने भगवान वाल्यमीकि से शिक्षा-दिक्षा ली थी। सीता मां मंदिर से कुछ दूरी पर ब्रह्मावर्त घाट है। यहां पर ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास आदिकाल का मंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन करने से पहले बिठूर के घाट किनारे बालू का शिवलिंग बनाकर यज्ञ किया था। प्राचीन मंदिर ब्रह्मखूंटी के पास स्थापित है। भक्त श्रावण मास में महादेव का शृंगार पूजन कर ब्रह्मा जी की आराधना भी करते हैं। यहां पर गंगा स्नान कर महादेव के दर्शन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

चार शिवालयों में से एक है ब्रह्मेश्वर महादेव
ब्रह्मावर्त घाट स्थित ब्रह्मखूंटी को विश्व का केंद्र माना जाता है। इस घाट पर स्थित ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर आदिकाल के चार शिवालयों में से एक है। आदिकाल के चार शिवालयों में बिठूर के ब्रह्मेश्वर महादेव मंदिर के साथ बाराबंकी का लोधेश्वर मंदिर, बनी का वनखंडेश्वर और बनीपारा का वाणेश्वर शिव मंदिर शामिल है। मंदिर के पुजारी आशीष तिवारी बताते हैं कि, यहां सावन माह में हजारों की संख्या में भक्त हैं। गंगा में स्नान के बाद ब्रह्मेश्वर महादेव के दर पर जाकर माथ टेकते हैं। ब्रह्मेश्वर महादेव भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। 8 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार है। ऐसे में इसदिन भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच सकती है।

ब्रह्माजी ने महादेव की थी पूजा
पुजारी आशीष तिवारी कहते हैं कि, मान्यता है कि गंगा तट किनारे ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण करने से पहले महादेव की पूजा की थी। गंगा की बालू से शिवलिंग बनाकर यज्ञ किया था। कई साल तक चले महायज्ञ में बालू का शिवलिंग पत्थर के शिवलिंग में बदल गया था। पुजारी बताते हैं, मंदिर के शिवलिंग पर तांबे की परत चढ़ी हुई है। महादेव का प्राचीन मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र रहता है। बताते हैं, नाना साहब पेशवा, तात्या टोप, लक्ष्मी बाई समेत सैकड़ों क्रांतिकारी ब्रह्मेश्वर महादेव के दर पर आकर पूजा-अर्चना किया करते थे।

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