कानपुर। उसके घर में बंकर थे और वह जेसीबी से दूसरों के घर तोड़ता था। उसके यहां प्रतिबंधित हथियार थे। वह इतना खुंखार था कि, पुलिस पर हाथ उठा देता था। एक बार तो उसने जज को भी धमका दिया तो थाने में घुसकर मंत्री को मौत के घाट उतार दिया। ‘खाकी’ उसकी चेरी थी। पुलिस विभाग में उसके मुखबिर थे। गांव के बाहर युवाओं को असलहा चलाने के अलावा गैरकानूनी कार्य करने के लिए ट्रेनिंग कैंप भी बनवा रखा था। शातिर ने 2 जुलाई 2022 को सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्याकर सरकार के पैरों के तले से जमीन खिसका दी थी। हलांकि, पुलिस की जवाबी कार्रवाई में अपने छह गुर्गो के साथ एनकाउंटर में विकास सुबे कानपुर वाला मारा गया था। घटना को पूरे दो वर्ष बीत जाने पर अस्तित्व की टीम ने बिकरू के लोगों से बात कर उनका मन टटोलने की कोशिश की। पता चला कि दो जुलाई 2020 की वह खौफनाक आज भी उनके जेहन में पूरी कालिमा के साथ अभी जिंदा है।
कौन था विकास दुबे कानपुर वाला
विकास दुबे शिवराजपुर थानाक्षेत्र के बिकरू गांव का रहने वाला था। विकास का सेंट्रल यूपी स्थित कानपुर और उसके आसपास के जिलों के लोग खौफ खाते थे। वह राजधानी लखनऊ स्थित प्रदेश के प्रधान नेताओं की नाक तले जुर्म का रक्तरंजित खेल खेलता रहता था। विकास दुबे ने करीब 30 वर्षों से ज्यादा समय तक कानपुर और पास के जिलों में खौफ के बल पर राज किया। विकास दुबे कई बार जेल गया, लेकिन उसका खौफ इतना है कि कोई सबूत मजबूती से खड़ा ही नहीं हो पाया। न प्रशासन के लोग, न जनता और न ही किसी और ने डर के मारे विकास दुबे के बारे में कुछ बोला।
आठ पुलिसकर्मियों को बहाया था खून
दिन 2-3 जुलाई 2020 स्थान उत्तर प्रदेश स्थित कानपुर के शिवराजपुर इलाके का बिकरू गांव। विकास दुबे नामक हिस्ट्रीशीटर और शातिर अपराधी को पुलिस मर्डर के एक आरोप में गिरफ्तार करने पहुंचती है। गांव में घुसते ही पुलिस बलों को बीच सड़क पर एक जेसीबी रास्ते रोके खड़ी दिखती है। पुलिस जब तक इस माजरे को समझ पाती, तब तक ऊपर छतों से विकास दुबे के गुर्गे अंधाधुंध फायरिंग करने लगते हैं। इस घटना में सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा, एसओ महेश यादव, चौकी इंचार्ज अनूप कुमार, सब इंस्पेक्टर नेबुलाल और कॉन्स्टेबल सुल्तान सिंह, राहुल, जितेंद्र और बल्लू शहीद हो जाते हैं। अपराधी इन पुलिसकर्मियों से एके-47 राइफल, इंसास राइफल और पिस्टल समेत गोलियां भी छीनकर ले जाते हैं।
जवाबी कार्रवाई में मारा गया विकास दुबे
आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद विकास दुबे अपने साथियों के साथ बिकरू से फरार हो जाता है। सीएम योगी आदित्यनाथ के आदेश पर कानपुर पुलिस और यूपी एसटीएफ शातिर अपराधी को दबोचने के लिए ऑपरेशन शुरू करती है। वारदात के दूसरे दिन पुलिस, विकास दुबे के मामा और भतीजे को एनकाउंटर में ढेर कर देती है। इसके बाद विकास के तीन और शातिर पुलिस मुठभेड़ में मारे जाते हैं। इस दौरान विकास भागकर उज्जैन पहुंच जाता है। जहां मध्यप्रदेश पुलिस उसे गिरफ्तार कर कानपुर पुलिस के हवाले कर देती है। पुलिस उसे लेकर जैसे ही भौंती पहुंचती है, वैसे कार पलट जाती है। विकास दुबे इंस्पेक्टर की पिस्टल लेकर पुलिस पर फायरिंग शुरू कर देता है। जवाबी कार्रवाई में विकास पुलिस की गोली से मारा जाता है।
बिकरू के लोगों ने कहा अब शांति
विकास की मौत के बाद अब गांव में शांति हैं। हलांकि यह शांति बच्चों को डराती है। बच्चों को उनके माता-पिता किसी बाहरी से बात करने से रोकते हैं। प्रधान पति संजय कुमार साथ आए, तभी कुछ बच्चे बात करने को तैयार हुए। इनमें से कृष्णा तब आठ साल का था। उसने कहा, ’जब पंडित जी जिंदा थे तो हरदिन गोली की अवाजें गांव में सुनाई देती थीं। हिमांशु ने कहा कि जब पंडित जी (विकास दुबे) गांव में रहते थे, हमें घरवाले बाहर निकलने से मना कर देते थे। अब कोई रोकता नहीं। रागनी कहती बताती हैं, गांव में बहुत बदलाव आ गया है। अब झगड़ा नहीं होता। युवा रोजगार के लिए शहर जा रहे हैं तो शिक्षा के प्रति भी उनका रूझान बढ़ा है।
..तो बच्चे सहम जाते हैं
रामजी तिवारी कहते हैं कि, अब भी भरी दोपहर भी कोई जोर से कुंडी खटका दे तो बच्चे चौंक जाते हैं। रामजी बताते हैं कि, बच्चों ने दो साल पहले के सावन में जो खून-खराबा फिर पुलिस का जो रूप देखा था, उसकी यादें उनके मन से निकल नहीं सकी हैं। पुलिस गश्त करने आती है तो ये सहम जाते हैं। वहीं ग्राम प्रधान पति कहते हैं कि विकास की मौत के बाद गांव विकास के पथ पर आगे बहुत तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि आज हमलोगों ने शहीद पुलिसकर्मियों को नमन कर श्रृद्धांजलि दी।