नई दिल्ली। चीन की तमाम धमकियों के बावजूद नैंसी पेलोसी ताइवान आईं और पूरा एक दिन गुजारकर वापस चली गईं। जिसके चलते चीन नाराज है और एक्सपर्ट आशंका जता रहे हैं कि बौखलाया चीन अब ताइवान पर हमला भी कर सकता है। लेकिन ताइबान ‘लाल सेना’ के कमांडर शी जिनपिंग की धमकियों की परवाह किए बिना युद्ध की तैयारी में पहले से जुटा है और उसक 35 लाख लड़ाके हर चुनौती के लिए तैयार है तो वहीं ताइवान के स्पेशल फोर्सेस भी एक्टिव हो गई हैं। स्पेशल फोर्सेस अपनी जमीन पर बेहद घातक होती हैं। इन फोर्सेस को पता है कि कहां हमला करना है, कैसे करना हैं। ताइवान के पास कई ऐसी फोर्सेस हैं जो एलीट कमांडो कैटेगरी की घातक टुकड़ियां हैं। लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है सबसे खतरनाक है सी ड्रैगन फ्रॉगमेन है। इन्हें सिर्फ फ्रॉगमेन भी बुलाया जाता है। इस फोर्स का गठन 1949 में अमेरिका की मदद से किया गया था।
क्या है पूरा मामला
अमेरिका की तीसरी सबसे बढ़ी महिला लीडर नैंसी पेलोसी ताइवान पहुंची थीं। चीन ने नैंसी पेलोसी को ताइवान नहीं आने की धमकी दी थी। चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि, यदि नैंसी पेलोसी, ताइवान आती है तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। नैंसी पेलोसी, बिना डरे ताइवान आई और भाषण देने के साथ पीसी भी की। पेलोसी के जाते ही चीन ने नॉर्थ, साउथ-वेस्ट और साउथ-ईस्ट में ताइवान के जल और हवाई क्षेत्र में मिलिट्री ड्रिल, यानी सैन्य अभ्यास की घोषणा कर दी है। चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने कहा है कि असली हथियारों और गोला-बारूद से ये अभ्यास इस पूरे हफ्ते तक किया जाएगा। चीन के हमले को देखते हुए ताइबान भी एक्टिव हो गया है और वह भी जंग की तैयारी में जुट गया है। ताइवान के पास सी ड्रैगन फ्रॉगमेन हैं, जिन्हें अलर्ट पर रख दिया गया है।
सी ड्रैगन फ्रॉगमेन के कमांडो फुल तैयारी में
चीन के हमले को लेकर सी ड्रैगन फ्रॉगमेन के कमांडो फुल तैयारी में हैं। जानकार बताते हैं कि, इनकी ट्रेनिंग भी अमेरिका के नेवी सील्स कमांडो के साथ होती है। इस टीम का असली नाम है 101 एंफिबियस रीकॉनसेंस बटालियन। इस यूनिट को आमतौर पर अंडरवॉटर ऑपरेशंस के लिए बनाया गया था, लेकिन ये अर्बन वॉरफेयर, जंगल वॉरफेयर और गोरिल्ला युद्ध में सक्षम हैं। इनका हमला इतना खतरनाक और तेज होता है कि दुश्मन को पता भी नहीं चलता कि हमला कैसे, कब और किसने किया। ये कमांडो हमला कर दुश्मन को खत्म कर ही अपने बैरक में वापस लौटते हैं।
ये छिप कर घातक हमला करते हैं
सी ड्रैगन फ्रॉगमेन की सबसे बड़ी खासियत है कि ,ये छिप कर घातक हमला करते हैं। एक बार ये किसी मिशन पर निकल गए तो उसे पूरा करके ही मानते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि चीन से अगर युद्ध होता है तो ये खास टीम चीन के सैनिकों की हालत पस्त कर देगी। ये सिर्फ सैनिकों की ही नहीं बल्कि चीन की आर्टिलरी, तोप, बख्तरबंद, वाहनों को नेस्तानाबूद कर देंगी। सी ड्रैगन फ्रॉगमेन का असली मकसद है कि निगरानी, जासूसी, घुसपैठ, सर्विलांस, तटीय सुरक्षा और कोवर्ट ऑपरेशंस। ऐसे में अगर चीन के सैनिक जल, थल और नभ से अटैक करते हैं तो पहले उन्हें सी ड्रैगन फ्रॉगमेन से भिड़ना होगा। बताया जाता है कि, गोली, बम और बारूद इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।
चुनने की प्रक्रिया बेहद कठिन
इस टीम में जो जवान चुने जाते हैं उनके चुनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है। चुने जाने के बाद इनकी 15 हफ्ते की ट्रेनिंग होती है, जिसे द आयरन मैन रोड कहते हैं। इसके बाद पांच दिन क्वालिफिकेशन कोर्स होता है। इस 15 हफ्ते की ट्रेनिंग के बाद सिर्फ 20 फीसदी ही सी ड्रैगन फ्रॉगमेन बन पाते हैं। जब इन्हें कमांडो घोषित किया जाता है तब इनके नंगेबदन पर यूनिट बैज का पिन सीने में धंसाया जाता है। इसके बाद ही ये सी ड्रैगन फ्रॉगमेन कहलाते हैं। इनके पास अत्याधुनिक अमेरिकी हथियार मौजूद हैं। जिनका उपयोग ये किसी भी कोवर्ट ऑपरेशन या फिर नजदीकी लड़ाई में कर सकते हैं।
1940 में चीन से अगल हुआ था ताइवान
चीन और ताइवान के बीच तनाव ऐतिहासिक है। 1940 के दशक में गृहयुद्ध के दौरान चीन और ताइवान अलग हुए थे। उसके बाद से ताइवान खुद को स्वतंत्र देश कहता है। जबकि, चीन उसे अपने प्रोविंस के तौर पर देखता है और जरूरत पड़ने पर बल पूर्वक मिला लेने की बात करता है। यानी ताइवान पर चीन के हमले का खतरा दशकों से बना हुआ है। ताइवान ने चीन जैसी विशाल शक्ति से निपटने के लिए एसिमिट्रिक वॉरफेयर के मेथड को अपनाया है। इसे पार्कुपाइन स्ट्रैटेजी भी कहते हैं। इसका उद्देश्य हमले को दुश्मन के लिए ज्यादा से ज्यादा कठिन और महंगा बनाना होता है।
द्वीपों की एक श्रृंखला ताइवान के लिए खास
ताइवान के इलाके में द्वीपों की एक श्रृंखला भी है। इनमें से कुछ चीनी तटों के पास हैं। इन द्वीपों पर पहले से लगे निगरानी इक्विपमेंट चीन के तटों से चलने वाले पहले फ्लीट्स या बेड़े का पता लगा सकते हैं। इससे ताइवान की सेना को मल्टीलेयर्ड सी डिफेंस के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। इससे पहले कि पीएलए के जवान ताइवान की जमीन पर उतरें और ऑपरेशन शुरू करें, उन्हें ताइवान की समुद्री माइंस, फास्ट अटैक क्राफ्ट और मिसाइल असॉल्ट बोट के साथ लैंड बेस्ड नौसैनिकों का भी सामना करना पड़ेगा। इससे पीएलए की स्थित काफी कमजोर होगी।